Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 311
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ हरीतक्यादिनिघंटे टीका - बेऋतुका जल मेघ छोडते हैं वोह सब देहियोंके त्रिदोषके अर्थ कहा है ॥ १६ ॥ बेऋतुका अर्थात् पौषादि मासचतुष्टयका विषय है अब ओलोंके जलका लक्षण और गुण ॥ १७ ॥ अन्तिरिक्षवायु अभिके संयोगसें संहत पत्थरके टुकडे के समान जल आकाशसें जो गिरते हैं वोह ओले अमृतके समान होते हैं ओलोंका पानी रूखा विशद भारी स्थिर है || १८ || दारुण शीतल सान्द्र पित्तहरता कफवातकों करनेवाला है. अथ तुषारहिमजललक्षणानि. अपि नद्याः समुद्रान्ते वह्निरापस्तदुद्भवाः ॥ १९॥ धूमावयवनिर्मुक्तास्तुषाराख्यास्तु ताः स्मृताः । अपथ्याः प्राणिनां प्रायो भूरुहाणां तु नोहिताः ॥ २० ॥ तुषाराम्बु हिमं रूक्षं स्याद्वातलमपित्तलम् । कफोरुस्तम्भकण्ठाग्निमेहकण्ठादिरोगनुत् ॥ २१ ॥ हिमवच्छिखरादिभ्यो द्रवीभूयाभिवर्षति । यत्तदेव हिमं हैमं जलमाहुर्मनीषिणः ॥ २२ ॥ हिमाम्बु शीतं पित्तघ्नं गुरु वातविवर्धनम् । हिमं तु शीतलं रूक्षं दारुणं सूक्ष्ममित्यपि ॥ २३॥ न तद्रूषयते वातं न च पित्तं न वा कफम् । टीका - नदीसें लेकर समुद्रपर्यन्त अग्नि होती है उस्सें उत्पन्न धूमांशरहित ॥१९॥ वोह जलतुषार नाम कहा है नदीसें लेकर समुद्रपर्यंत अग्नि होता है उस अनसें उत्पन्न धूमांशररित जल तुषारनाम है तुष और तुषार इसप्रकार भी लोकमें कहते हैं ये ह प्रायः प्राणियोंकों अहित है और वृक्षादियोंकों हित नहीं है || २० || तुषारजल शीतल रूखा होता है और वातकों करनेवाला तथा पित्तकों करनेवाला है और कफ ऊरुस्तंभ कण्ठरोग अग्निमान्ध प्रमेह कण्ड्डादिरोगकों हरताहै || २१ || हिमालयके शिखरादियोंसें निकलके जो बरसता है वोह हिमहै उसके जलकों हैमजल मुनियोंनें कहा है ॥२२॥ बरफका पानी शीतल पित्तकों हरता भारी वायुकीं बढानेवाला है वडवानल के धूमसे प्रेरित समुद्रका जल जो गाढाहुवा वायुसें लायाहुवा उत्तरमें उसकों हिम ऐसा For Private and Personal Use Only

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