Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 259
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ हरीतक्यादिनिघंटे टीका - मूली दोप्रकारकी कही है उसमें एक छोटी मूली शालमर्कटक विस्र शालेय मरुसंभव ॥ ९८ ॥ चाणक्य मूलक तीक्ष्ण तथा मूलकपोतिका यह मूलीके नाम हैं और दूसरी नैपाली मूली तथा उसका भेद हाथी के दांतके समान होती है ९९ छोटी मूली कडवी गरम होती है और रुचिकों करनेवाली हलकी पाचन होती है और तीनों दोषोंकों हरती स्वरकों अच्छा करनेवाली और ज्वर श्वासकों हरती है १०० और नासिकारोग तथा कण्ठरोग इनकों हरती है और नेत्ररोगकों हरती है वोही बडी रूखी गरम भारी तीनों दोषोंकों छेदनेवाली है ॥ १०१ ॥ स्नेहसिद्ध वोही तीनों दोषोंकों हरती है गाजर गुंजन नारंगवर्णक यह गाजर के नाम हैं ।। १०२ ॥ गाजर मधुर तीखा उष्ण दीपन हलका होता है और काविज रक्त पित्त ववासीर संग्रहणी कफवात इनकों हरनेवाला है ॥ १०३ ॥ केलाका कन्द शीतल वलकों देनेवाला केशके हित अम्लपित्तकों हरनेवाला अग्निदीपन दाहकों हरता मधुर रुचिकों करनेवाला है || १०४ ॥ अथ मानकंद मानक महापत्र होते हैं अब इस्के गुण कहते हैं मानकंद शोथकों हरता शीतल पित्तरक्तकों हरता हलका होता है १०५ इस्कों ठोंठी इसप्रकार लोकमें कहतेहैं वाराहीकन्द पित्तकों करनेवाला बलकेहित कडवा तिक्त रसायन और आयु शुक्रकों और अग्निकों करनेवाला और प्रमेह कफ कुष्ठ वात इनकों हरता है ॥ १०६ ॥ अथ हस्तिकर्णामुककसेरुगुणाः. गजकर्णा तु तिक्तोष्णा तथा वातकफान्जयेत् । शीतज्वरहरी स्वादुः पाके तस्यास्तु कन्दकः ॥ १०७॥ पाण्डुशोथकमिप्लीहगुल्मानाहोदरापहः । ग्रहण्यशविकारघ्नो वनसूरणकन्दवत् ॥ १०८ ॥ केमुकं कटुकं पाके तिक्तं ग्राहि हिमं लघु । दीपनं पाचनं हृद्यं कफपित्तज्वरापहम् ॥ १०९ ॥ कुष्ठकासप्रमेहास्वनाशनं वातलं कटु । कसेरु द्विविधं तत्तु महद्राजकसेरुकम् ॥ ११० ॥ मुस्ताकतिर्लघु स्यायत्तच्चिचोढमिति स्मृतम् । कसेरुकद्वयं शीतं मधुरं तुवरं गुरु ॥ १११ ॥ For Private and Personal Use Only

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