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मांसवर्गः ।
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वाला हरिणसें कुछ एक छोटा होता है बहुत सिङ्गवाला न्यंकु साबर महान् गवय होता है || १२ || जो मृग बहुतसी लकीरोंसें युक्त हो इस्कों राजीव मृग जानना चाहिये जो मृग बेसिङ्गका होता है उसको मुण्डी ऐसा कहते हैं ।। १३ ॥ सब प्रायः पित्तकफकों हरते कहेहैं अल्प वातकों करनेवाले हलके और बलकों बढानेवाले हैं ॥ १४ ॥
अथ बिलेशयानां गुहाशयानां च गुणाः. गोधाशशभुजङ्गाखुशलक्याद्या बिलेशयाः । बिलेशया वातहरा मधुरा रसपाकयोः ॥ १५ ॥ वृंहणा बद्धविण्मूला वीर्योष्णाश्च प्रकीर्त्तिताः । सिंहव्याघ्रवृका ऋक्षतरक्षुद्वीपिनस्तथा ॥ १६ ॥ बभ्रुजम्बूकमार्जारा इत्याद्याः स्युर्गुहाशयाः । स्थूलपुच्छो रक्तनेत्रो बभ्रुदेहः स नाकुलः ॥ १७ ॥ गुहाशया वातहरा गुरूष्णा मधुराश्च ते I
स्निग्धा बल्या हिता नित्यं नेत्रामयविकारिणाम् ॥ १८ ॥
टीका – बिल में रहनेवालोंकी गणना और गुण कहते हैं गोह खरगोश साप चूहा साहि आदि यह बिलेशय हैं बिलेशय वात हरता और रसपाकमें मधुर है १५ तथा पुष्ट मलमूत्रकों बांधनेवाले और वीर्यमें उष्ण कहेहैं अब गुहाशयोंकी गणना और गुण शेरभेडिया रीछ तेन्दुवा वाघ चीता तथा ।। १६ ।। नउला गीदड बिलाव इत्यादि येह गुहाशय हैं तरक्षु हउहा इसप्रकार लोकमें कहते हैं चीता व्याघ्र इसप्रकार लोकमें कहते हैं मोटी पुच्छ लाल आंखों पिंगल शरीर वोह नेउला है || १७ ॥ गुहाशय वातहरता भारी उष्ण मधुर चिकने बलकों करनेवाले और सदा नेत्र लिंरोग वालोंकों हित है ॥ १८ ॥
वनौको वृक्षमार्जारो वृक्षमर्कटिकादयः ।
एते पर्णमृगाः प्रोक्ताः सुश्रुताद्यैर्महर्षिभिः ॥ १९ ॥ वनौकां वानरो वृक्षमार्जारो वृक्षविडालः । स्मृताः पर्णमृगा वृष्याश्चक्षुष्याः शोषिणे हिताः ॥ २०॥
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