Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 281
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ हरीतक्यादिनिर्घटे टीका - मछली अंडे अत्यन्त शुक्रकों करनेवाले चिकने पुष्टिकों करनेवाले roha और कफ प्रमेहकों करनेवाले बलकों हित ग्लानिकों करनेवाले प्रमेह हरतेहैं ॥ १२३ ॥ सूकी मछली नई बलकों देनेवाली दुर्जर मलकों बांधनेवाली है दग्ध मछली गुण श्रेष्ठ पुष्टों करनेवाली बलकों बढानेवाली है अथ कुवेकी मछलियां शुक्र मूत्र कुष्ठ कफ इनको बढानेवाली है ॥ १२४ ॥ सरोवरकी मछलियां मधुर चिकनी बलकों करनेवाली बातकों हरती है नदीकी मछलियां पुष्ट भारी वातहरती है ।। १२५ ।। और रक्त पित्तकों करनेवाली चिकनी उष्ण अल्प मलकों करनेवाली है गढईकी मछलियां पित्तकों करनेवाली चिकनी मधुर हलकी शीतल होती है। ।। १२६ ।। तालावकी मछलियां भारी शुक्रकों करनेवाली शीतल बल मूत्रकों देनेवाली है तालाव और सावलीकी मछलियां बल आयु मति दृष्टी इनकों करनेवाली है ।। १२७ ।। अथ ऋतुविशेषसें मत्स्यविशेष हेमन्तमें कुबेकी मछली शिशिर में सरो वरकी वसन्तमें नदीकी ग्रीष्म में गढईकी ॥ १२८ ॥ वरसातमें तलावकी हित होती और वरसात नदीकी अहित होती है झरनेकी शरद् में श्रेष्ठ होती है यह विशेष कहाहै ॥ १२९ ॥ इति हरीतक्यादिनिघंटे मांसवर्गः समाप्तः || For Private and Personal Use Only

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