Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
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२८२.
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हरीतक्यादिनिघंटे
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अथ शष्कुली सेविकामोदकगुणाः. समिताया घृताक्ताया लोप्लीं कृत्वा च वेल्लयेत् । आज्ये तां भर्जयेत्सिद्धा शष्कुली फेनिकागुणा ॥ १२१ ॥ घृताढ्या समितया कृत्वा सूत्राणि तानि तु । निपुणो भर्जयेदाज्ये खण्डपाकेन योजयेत् ॥ १२२ ॥ युक्तेन मोदकान्कुर्यात्ते गुणैर्मण्डका यथा । मुद्रानां धूमसी सम्यग्घोलयेन्निर्मलाऽम्बुना ॥ १२३ ॥ कटाहस्य वृतेरूर्ध्व झर्झरं स्थापयेत्ततः । धूमसीं तु द्रवीभूतां प्रक्षिपेज्झर्झरोपरि ॥ १२४ ॥ पतन्ति बिन्दवस्तस्मात्तान् सुपक्कान् समुद्धरेत् । सितापाकेन संयोज्य कुर्याद्धस्तेन मोदकान् ॥ १२५॥ लघुग्रही त्रिदोषघ्नः स्वादुः शीतो रुचिप्रदः । चक्षुष्यो ज्वरहृद्वल्यस्तर्पणो मुद्गमोदकः ॥ १२६॥
टीका - ( क ) वेल वेलन रोटी लोई अनन्तर सोहरी घृतसहित मैदेकी लोई बनाकरवेले उस्को घृतमें पकावै वोह सिद्ध हुई फेनिके समान गुणमें होती है ॥ १२१ ॥ घृतके सहित मैदारों सूत्रकरके उनकों निपुण घृतमें पकावै अनन्तर खां - डके पाकमें उसकों डालै ॥ १२२ ॥ उनके लड्डु करै वे गुणमें मण्डकके समान होते हैं मूंगके आटेकों निर्मल जलमें घोलै ॥ १२३ ॥ कटाईके किनारेपर झारेकों रखे अनन्तर उस घोलेहुए मूंगके आटेकों झारेके ऊपर डाले ॥ १२४ ॥ उस्सें बुंद गिरते हैं उन पकेहुवकों निकाललेवे चीनीके पाक में मिलाकर हाथसें लड्डु बनावै || १२५ || यह हलका काविज त्रिदोषहरता मधुर शीतल रुचिकों करनेवाला नेत्रके हित ज्वर हरता बलकारी तर्पण मृद्गके लड्डु होते हैं ॥ १२६ ॥
अथ सेवनमोदक तथा जिलेबी गुणाः.
एवमेव प्रकारेण कार्याः सेवनमोदकाः । ते बल्या लघवः शीताः किञ्चिद्वातकरास्तथा ॥ १२७ ॥
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