Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
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२८०
हरीतक्यादिनिघंटे समिताः शर्करासपिर्निर्मिता अपरेऽपि ये । प्रकारा अमुना तुल्यास्तेऽपि चेत्तद्गुणाः स्मृताः ॥ १०८॥ पर्पट्यः साज्यसमिताःनिर्मिता घृतभर्जिताः। कुहिताश्चालिताः शुद्धशर्कराभिर्विमर्दिताः॥ १०९॥ तत्र चूर्णं क्षिपेदेलालवङ्गमरिचानि च।
नालिकेरं सकर्पूरं चारबीजान्यनेकधा ॥ ११०॥ टीका हींग जीराके सहित तेलमें अच्छी तरह बनाईहुई शाकको डाले ॥ १०३ ॥ लवण आमचूरआदि सिद्धहुवेमें होगका पानी डाले इसमकार सब शाकोंके बनानेकी विधि इष्ट है ॥ १०४ ॥ मैदेकों मलै और पानीसें सानै उस्की वटिका करके घृतमें नीरस पकावै इलायची लवंग कपूर मरिचआदिसें युक्त ॥१०५॥ इस्कों चीनीके पाकमें डालै अनन्तर उस्कों निकालै इसतरहपर सिद्धहुवेकों मठडी ऐसा कहतेहैं ॥ १०६ ॥ मठडी पुष्ट शुक्रको करनेवाली बलकेहित अच्छी मधुर भारी पित्तवातकों हरती रुचिकों करनेवाली दीप्ताग्निवालोकों अच्छीहै ॥ १०७॥ औरभी जो मैदा शकर घी इनसें बनायेहुवे पदार्थ इसीके समान गुणमें है वेभी उसीके समान गुणवाले कहेहैं ॥ १०८ ॥ घृतके सहित मैदेसें बनायेहुवे रोट घीमें भूनेहुवे ॥ १०९ ॥ उस चूर्णमें इलायची लवंग मरिच नारियल कपूर चिरोंजी और अनेक प्रकार ॥ ११० ॥
अथ कर्पूरनालिकेलीगुणाः. घृताक्तसमिता पुष्टरोटिका रचिता ततः । तस्यान्तः पूरणं तस्य कुर्यान्मुद्रां दृढां सुधीः ॥ १११॥ सर्पिषि प्रचुरे तां तु सुपचेन्निपुणो जनः। प्रकारज्ञैः प्रकारोऽयं सम्पाव इति कीर्तितः ॥ ११२॥ घृताढ्यया समितया लाम्बं कृत्वा पुटं ततः । लवङ्गोल्बणकर्तरयुतंच सितयाऽन्वितम् ॥ ११३॥ पचेदाज्येन सिद्धे सा ज्ञेया करिनालिका । सम्पावसदृशी ज्ञेया गुणैः कर्पूरनालिका ॥ ११४ ॥
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