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___ गडूच्यादिवर्गः।
७७ गरम, मधुर, और भारी है, दीपन और पाचन, कांतिको बढानेवाली, भेदन करनेवाली, भ्रम और शोषकों जीतनेवाली है ॥ १६ ॥ दोष, तृषा, आमशूल, ववासीर, विष, दाह, और ज्वर, इनको हरनेवाली. इसका फल पुष्ट है, वीर्यकों उत्पन्न करनेवाला, रसायन है ॥ १७ ॥ और वात, पित्त, तृषा, रक्तक्षय, मूत्रका बंदहोना, इनको हरनेवाला है, और पाकमें मधुर, शीतल, चिकना, तथा कसेला,
और खट्टा होता है, शुद्धिकों करनेवाला है ॥ १८॥ और दाह, तृषा, वात, रक्त, पित्त, क्षत, तथा क्षयकोंभी हरनेवाला जानना.
अथ पाटली(पाण्डरीकण्ठपाण्डरी)नामगुणाः. पाटलिः पाटला मोघा मधुदूती फलेरुहा ॥ १९॥ कृष्णवन्ता कुबेराक्षी कालस्थाल्यलिवल्लभा । ताम्रपुष्पी च कथिता परा स्यात्पाटला सिता ॥ २० ॥ मुष्कको मोक्षको घण्टा पाटलिः काष्ठपाटला।
(कालस्थालीत्यत्र काचस्थालीत्येके) टीका-पाटलि १, पाटला २, मोघा ३, मधुदूती ४, फलेरुहा ५ ॥ १९॥ कृष्णता ६, कुबेराक्षी ७, कालस्थाली ८, अलिवल्लभा ९, ताम्रपुष्पी १०, ये पाटलाके नाम कहे. और दूसरी पाटला सिता १ ॥ २० ॥ मुष्कक २, मोक्षक ३, घण्टा ४, पाटली ५, काष्ठपाटला ६, ये काष्ठपाटलाके नाम हैं.
पाटला तुवरा तिक्ता चोष्णा दोषत्रयापहा ॥ २१ ॥ अरुचिश्वासशोथास्त्रछर्दिहिक्कातृषाहरा । पुष्पं कषायं मधुरं हिमं हृद्यं कफास्त्रनुत् ॥ २२ ॥
पित्तातीसारहत्कण्ठ्यं फलं हिक्कास्त्रपित्तहत् । टीका-कालस्थाली यहांपर कोई काचस्थालीभी कहते हैं. ये कसेली, तिक्त, शीतल, तीनों दोषोंके नाश करनेवाली ॥ २१ ॥ अरुचि, श्वास, शोथ, रक्तवमन होना, तृषा, इनकी हरनेवाली है, और इसका पुष्प कसेला, और मधुर, तथा शीतल, हृदयकों हितकारी, कफ, तथा रक्तका नाशक है, पित्तातीसारको हरनेवाला है ॥ २२॥ कंठकों अच्छा करनेवाला है, और उसका फल, हुचकी, तथा रक्तपित्त, और कफका नाशक है.
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