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हरीतक्यादिनिघंटे प्लक्ष पांच यह क्षीरवृक्ष हैं. उनकी छाल पंचवल्कल हैं ॥ १५॥ कोई पार्श्वपीपलकों शिरीष और कोई वेतसकों कहते हैं. यह शेषहै. क्षीर शीतल, वर्णकों अच्छा करनेवाले योनिरोग व्रण इनकों हरता है सूखे, कसेले, मेदकों हरनेवाले, विसर्परोगकों हरतेहैं ॥ १६॥ तथा शोथ, पित्त, कफ, रक्त, इनकों हरताहै और दूधकों करनेवाला है टूटेहाडकों जोडनेवालीहै और पांचोंकी छाल शीतल, काविज, व्रण, शोथ, विसर्प, इनको हरनेवालाहैं ॥ १६ ॥ इनके पत्ते शीतल, काविज, कफ, वात, रक्तकों हरतेहैं, हलके हैं और विष्टम्भ, आध्मान, इनको हरनेवाले तिक्त कसेले लेपन हैं ॥ १८॥
__ अथ शालस्तद्भेदश्च तद्गुणाः. शालस्तु सर्जकार्याश्वकर्णिकाशस्यसंवरः । अश्वकर्णः कषायः स्याद्रणस्वेदकफळमीन् । बध्मविद्रधिबाधिर्ययोनिकर्णगदान्हरेत् ॥ १९ ॥ सर्जकोऽजककर्णः स्याच्छालो मरिचपत्रिकः । अजकर्णः कटुस्तिक्तः कषायोष्णो व्यपोहति ।
कफपामाश्रुतिगदान्मेहकुष्टविषव्रणान् ॥ २०॥ टीका-शाल, सर्जकार्य, अश्वकर्णिका, शस्यसंवर यह सालके नाम हैं. साल कसेला होताहै और व्रण, स्वेद, कफ, कृमि, बद, विद्रधी, बहरापन, योनिरोग, कर्णरोग, इनकों हरता है ॥ १९॥ सर्जक, अजकर्ण, शाल, मरिचपत्रक यह शालभेदके नाम हैं दूसरा शाल कडुवा, तिक्त, कसेला, उष्ण होता है और कफ, खुजली, कर्णरोग, प्रमेह, कुष्ठ, विष, व्रण, इनको हरता है ॥२०॥
अथ शल्लकी (शालई) नामगुणाः. शल्लकी गजभक्ष्या च सुवहा सुरभी रसा। महेरुणा कुन्दुरुकी वल्लकी च वहुस्त्रवा ॥ २१ ॥ शल्लकी तुबरा शीता पित्तश्लेष्मातिसारजित् ।
रक्तपित्तव्रणहरी पुष्टिकत्समुदीरिता ॥ २२ ॥ टीका-शल्लकी, गजभक्ष्या, सुवहा सुरभीरसा, महेरुणा, कुन्दुरुकी, वल्लकी, बहुस्रवा यह सलईके नाम हैं. ॥ २१ ॥ सलई कसेली, शीतल, पित्त, कफ,
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