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हरीतक्यादिनिर्घटे
श्वेतो रक्तस्तथा कृष्णस्त्रिविधः स प्रकीर्तितः ॥ ४३ ॥ यो महांस्तेषु भवति स एवोक्तो गुणाधिकः ।
टीका - माष अर्थात् उडद भारी पाकमें मधुर चिकना रुचिकों करनेवाला वातहरा संसन तर्पण बलकेहित शुक्रकों करनेवाला पुष्ट होता है ॥ ३९ ॥ और मलमूत्रकों करनेवाला दुग्धकों करनेवाला भेद और पित्तकों करनेवाला है और गुद अर्दित श्वास पंक्तिशूल इनकों हरता है ॥ ४० ॥ उडद कफपित्तकों करनेवाला है और दही कफपित्तकों करनेवाली है और मछलियां कफपित्तकों करनेवाली हैं तथा बैंगन कफपित्तकों करनेवाला है ॥ ४१ ॥ वोडा यह नाम बनारस में प्रसिद्ध है और वेरातरा लोविया इननामोंसें भी कईक शहरोंमें प्रसिद्ध हैं राजमाष महामाष चपल चवल येह लोवियाके नाम कहें हैं लोविया भारी मधुर कसेला तृष्टिकों करनेवाला सर ॥ ४२ ॥ रूखा वातकारी रुचिकों करनेवाला दुग्ध और 'बहुत बल्कों देनेवाला है सफेद लाल तथा काला ऐसे वोह तीनप्रकारका कहाहै ॥ ४३ ॥ उन्में जो बडा है वोह गुणमें अधिक होता है.
अथ निष्पावमकुष्ठमसूरतुवरीनामगुणाः.
निष्पावो राजशिम्बिः स्याद्वलकः श्वेतशिम्बिकः । निष्पावो मधुरो रूक्षो विपाकेऽम्लो गुरुः सरः ॥ ४४ ॥ कषायस्तन्यपित्तास्त्रमूत्रवातविबन्धकत् ।
विदाद्युष्णो विषश्लेष्मशोथहृच्छुक्रनाशनः ॥ ४५ ॥ मकुष्ठो वनमुद्गः स्यान्मकुष्ठकमुकुष्ठकौ ।
कुष्ठ वातलो ग्राही कफपित्तहरो लघुः ॥ ४६ ॥ वन्हि जन्मधुरः पाके रूमिकज्ज्वरनाशनः । मंगल्यको मसूरः स्यान्मंडल्या च मसूरिका ॥ ४७ ॥ मसूरो मधुरः पाके संग्राही शीतलो लघुः । कफपित्तास्रजिद्र्क्षो वातलो ज्वरनाशनः ॥ ४८॥ आढकी तुवरी चापि सा प्रोक्ता शणपुष्पिका । आढकी तुवरा रूक्षा मधुरा शीतला लघुः ॥ ४९ ॥
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