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धातुरसरत्नविषवर्गः ।
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टीका - सुहागा अग्निकों करनेवाला रूखा कफकों हरता वातपित्तकों करनेवाला है इस्कों उपरस होनेसें फिर कहा ॥ १३५ ॥ स्फटी स्फटिका श्वेता शुभ्रा रंगदा दृढरङ्गा रङ्गदाभा और दृढा तथा रंगाभा यह फिटकरीके नाम हैं ॥ १३६ ॥ फिटी कसेली गरम होती है और वात पित्त कफ व्रण इनकों हरती है तथा श्वित्र विसर्पकभी हरती है और योनिका सङ्कोच करनेवाली है ॥ १३७ ॥
अथ राजावर्तचुम्बक सुवर्णगेरूनामगुणाः. राजावर्त्तः कटुस्तिक्तः शिशिरः पित्तनाशनः । राजावर्त्तः प्रमेहनछर्दिहिक्कानिवारणः ॥ १३८ ॥ चुम्बकः कान्तपाषाणो यः कान्तो लोहकर्षकः । चुम्बको लेखनः शीतो मेदोविषगरापहः ॥ १३९॥ गैरिकं रक्तधातुश्च गैरेयं गिरिजं तथा । सुवर्णगैरिकं त्वन्यत्ततो रक्ततरं हि तत् ॥ १४० ॥ गैरिकद्वितयं स्निग्धं मधुरं तुवरं हिमम् । चक्षुष्यं दाहपित्तास्रकफहिक्काविषापहम् ॥ १४१ ॥
टीका- राजावर्त कडवी तिक्त शीतल पित्त हरता है राजावर्त प्रमेह हरता और वमन हिचकी इनकों हरनेवाला है || १३८ || चुम्बक कान्तपाषाण कान्त लोहकर्षक यह लोहचुम्बकके नाम हैं चुम्बक लेखन शीतल मेद विष गर इनकों हरता है ॥ १३९ ॥ गैरिक रक्तधातु गैरेय गिरिज यह गेरूके नाम हैं सोनागेरू उस्सें दूसरा होता है और वोह बहुत लाल होता है ।। १४० ॥ दोनों गेरू चिकने मधुर कसेले शीतल नेत्रके हित और दाह पित्त रक्त कफ हिचकी विष इनकों हरता है ॥ १४१ ॥
अथ खटीगौरखटी तथा वाळूनामगुणाः.
खटिका कटिनी चापि लेखनी च निगद्यते ।
खटिका दाहजिच्छीता मधुरा विषशोथजित् ॥ १४२॥ लेपादेतगुणा प्रोक्ता भक्षिता मृत्तिकासमा । खटी गौरखटी द्वे च गुणैस्तुल्ये प्रकीर्त्तिते ॥ १४३॥
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