________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८
गडूच्यादिवर्गः। दोषोंका हरनेवाला, और कुष्ठ, उदावर्त, गुल्म, ववासीर, व्रण, कृमि, कफ, इनका हरनेवाला है ॥ १२१ ॥ और इसका पत्र कफ, वात, बवासीर, कृमि, सूजन, इनका हरनेवाला है. भेदनीय, कडवा, पाकमें और वीर्यमें गरम, पित्तकों करनेवाला, हलका है ॥ १२२ ॥ और इसका फल कफवातका हरनेवाला, प्रमेह, ववासीर, कृमि, कुष्ठ, इनकों जीतनेवाला है. घृतपूर्णनाम दूसरा करंजभी इसीके सदृश है ॥ १२३ ॥
अथ उदकीर्य(अरारि)नामगुणाश्च. उदकीयस्तृतीयोऽन्यः षड्न्था हस्तिवारुणी। मर्कटी वायसी चापि करञ्जी करभञ्जिका ॥ १२४ ॥ करञ्जी स्तम्भनी तिक्ता तुवरा कटुपाकिनी।
वीर्योष्णा वमिपित्ताशःकमिकुष्ठप्रमेहजित् ॥ १२५ ॥ टीका:-उदकीर्य और तीसरा करंजवा, षड्ग्रन्था, हस्तिवारुणी, मर्कटी, वायसी, करंजी, करभंजिका, ये डारकरजके नाम हैं ॥ १२४ ॥ ये स्तम्भन करनेवाला, तिक्त, और कसेला, कटुपाकवाला, वीर्यमें गरम, और वमन पित्तकी ववासीर, कृमि, कुष्ठ, प्रमेह, इनको जीतनेवाला है ॥ १२५ ॥
अथ श्वेतरक्तगुंजानामगुणाश्च. श्वेता रक्तोच्चटा प्रोक्ता कृष्णला चापि सा स्मृता। रक्ता सा काकचिञ्ची स्यात् काकानन्ता च रक्तिका ॥१२६॥ काकादनी काकपीलः सा स्मृता काकवल्लरी । गुञ्जाइयं तु केश्यं स्यात् वातपित्तज्वरापहम् ॥ १२७ ॥ मुखशोषभ्रमश्वासतृष्णामदविनाशनम् । नेत्रामयहरं वृष्यं बल्यं कण्डूव्रणं हरेत् ॥ १२८ ॥
कमीन्द्रलुप्तकुष्ठानि रक्ता च धवलापि च । टीका-अब सफेद और लाल चिरमिठीके नाम तथा गुण कहते हैं. सफेद, और लालकों उच्चटा और कृष्णलाभी कहै हैं. और लालचिरमिठीकों काकचिश्ची १, काकानन्ता २, रक्तिका ३ ॥ १२६ ॥ काकादनी ४, काकपीलु ५, काकवल्लरी ६,
For Private and Personal Use Only