________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुष्पादिवर्गः।
१३३ टीका-नैपाली, सप्तला, नवमालिका, यह निवारीके नाम हैं ॥ २२॥ निवारी शीतल, हलकी, तिक्त, त्रिदोषको हरनेवाली है. वार्षिकीवेल, अर्थात् वरसानीवेल श्लीपदी, षट्पदा, नंदा, वार्षिकी, शुक्रबन्धना, यह वरसाती वेलके नाम हैं ॥ २३ ॥ वर्साती शीतल, तिक्त, हलकी, त्रिदोषकों हरती है, और कान, आंख मुख, इनके रोगोंकों हरती है. उस्का तेल उसीके समान गुणमें कहा गया है ॥२४॥
अथ जाती(चम्बेली)नामगुणाः. जातिर्जाती च सुमना मालिती राजपुत्रिका । चेतिका हृद्यगन्धा च सा पीता स्वर्णजातिका ॥ २५॥ जातीयुगं तिक्तमुष्णं तुवरं लघु दोषजित् ।
शिरोक्षिमुखदन्तातिविषकुष्ठानिलास्त्रजित् ॥ २६ ॥ टीका-जाति, जाती, मुमना, मालिनी, राजपुत्रिका, यह चमेलीके नाम हैं. और चेतिका हृद्यगन्धा, स्वर्णजातिका, यह पीली चमेलीके नाम हैं ॥ २५॥ दोनों चमेली तिक्त, उष्ण, कसेली, हलकी, दोषकी हरनेवाली है, और शिर, नेत्र, मुख, दांत, इनकी पीडा. और विष, कुष्ठ, वातरक्त, इनको हरनेवाली है ॥ २६ ॥
अथ यूथिका तथा चंपा (जुहीसुवर्णजुही). यथिकागणिकाम्बष्ठा सा पीता हेमपुष्पिका। यूथीयुगं हिमं तिक्तं कटुपाकरसं लघु ॥ २७ ॥ मधुरं तुवरं हृद्यं पित्तघ्नं कफवातलम् । व्रणास्त्रमुखदन्ताक्षिशिरोरोगविषापहम् ॥ २८ ॥ चाम्पेयश्चम्पकः प्रोक्तो हेमपुष्पश्च स स्मृतः। एतस्य कलिका गन्धफलिनी कथिता बुधैः ॥ २९ ॥ चम्पकः कटुकस्तिक्तः कषायो मधुरो हिमः ।
विषकमिहरः कृच्छ्रकफवातास्वपित्तजित् ॥ ३० ॥ टीका-यूथिका, गणिका, अम्बष्ठा, यह जुहीके नाम हैं. और हेमपुष्पिका, यह पीलीजुहीके नाम है. दोनों जुही शीतल, पाकमें कडवी, हलकी होती है॥२७॥ और मधुर, कसेली, हृय, पित्तहरती, कफवातकों करनेवाली है, और घाव, रक्त,
For Private and Personal Use Only