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हरीतक्यादिनिघंटे हिङ्गपत्री भवेद्वच्या तीक्ष्णोष्णा पाचनी कटुः ॥ २६४॥
हृद्वस्तिरुग्विबन्धाशःश्लेष्मगुल्मानिलापहा । टीका-वटपत्री, मोहिनी, रेचनी, यह वटपत्रीके नाम पंडितोंने कहे हैं. वटपत्री, कसेली, गरम है, और योनिरोग, मूत्ररोग, इनकों हरती है ॥२६३॥ हिंगुपत्री, कवरी, पृथ्वीका, पृथुका, पृथु, यह हिंगुपुत्रीके नाम हैं. हिंगुपत्री रुचिकों करनेवाली, तीखी, उष्ण, पाचन कडवी है ॥२६४॥ और हृदय, पेडकी पीडा, विवन्ध, ववासीर, कफ, वायगोला, वात, इनको हरती है.
अथ वंशपत्री, मत्स्याक्षीनामगुणाः. वंशपत्री वेणुपत्री पिङ्गा हिड शिवाटिका ॥ २६५ ॥ हिडपत्री गुणा विज्ञैवंशपत्री च कीर्तिता।। मत्स्याक्षी बालिका मत्स्यगन्धा मत्स्यादनीति च ॥२६६॥ मत्स्याक्षी ग्राहिणी शीता कुष्ठपित्तकफास्त्रजित् ।
लघुस्तिक्ता कषाया च स्वादी कटुविपाकिनी ॥ २६७ ॥ टीका:-पत्री, वेणुपत्री, पिण्डा, हिंगुशिवाटिका यह वंशपत्रीके नाम हैं. ॥२६५ ॥ शपत्री हिंगुपत्रीके समान गुणमें कहीं है मत्स्याक्षी इस्को मच्छेगी और मछरिया ऐसा कहते हैं. ॥२६६॥ मत्स्याक्षी, बाहिका, मत्स्यगन्धा, मत्स्यादनी, यह मत्स्याक्षीके नाम हैं. मत्साक्षी काविज, शीतल है, और पित्त, कुष्ट, कफ, रक्त, इनको हरनेवाली है, और हलकी, तिक्त, कसेली, मधुर, पाकमें कटु होती है॥२६॥
अथ साक्षी(सरहटीगण्डिनी)नामगुणाः. सर्पाक्षी स्यात्तु गण्डाली तथा नाडीकपालकाः । सर्पाक्षी कटुका तिक्ता सोष्णा कमिविकन्तनी ॥ २६८ ॥
वृश्चिकोन्दुरसर्पाणां विषघ्नी व्रणरोपणी। टीका-सर्पाक्षीकों सरहटी, गंडिनी ऐसाभी कहते हैं, साक्षी गंडाली, तथा नाडी कपालक, यह साक्षीके नाम हैं. साक्षी कडवी, तिक्त, कुछ, गरम होती है,
और कृमिकों हरती है ॥ २६८ ॥ और विच्छू, चूहा, सांप, इनके विषकों हरती है, और घावकों भरनेवाली है.
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