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गच्यादिवर्गः ।
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नको जीतता है ॥ ९९ ॥ और प्रमेह, श्वास, वायगोला, ववासीर, मूषेका विष, इनका नाशक है.
अथ पारिभद्र ( जलनीम) नामगुणाश्च.
पारिभद्रो निम्बतरुर्मन्दारः पारिजातकः ॥ १०० ॥ पारिभद्रोऽनिल श्लेष्मशोथमेदः कृमिप्रणुत् । तत्पत्रं पित्तरोगघ्नं कर्णव्याधिविनाशनम् ॥ १०१ ॥
टीका - पारिभद्र १, निम्बतरु २, मंदार ३, पारिजातक ४, ये जलनीमके नाम हैं, ॥ १०० ॥ ये वात, कफ, सूजन, मेद कृमि, इनका हरनेवाला है, और इसका पत्र पित्तरोगका नाशक है, और कर्णारोगकाभी हरनेवाला है ॥ १०१ ॥
अथ काञ्चनार (कचनार) नामगुणाश्च. काञ्चनारः काञ्चनको गण्डारिः शोणपुष्पकः ।
( अथ कचनारभेदः)
कोविदारश्वमरिकः कुद्दालो युगपत्रकः ॥ १०२ ॥ कुण्डली ताम्रपुष्पश्चाश्मन्तकः स्वल्पकेसरी । काञ्चनारो हिमो ग्राही तुवरः श्लेष्मपित्तनुत् ॥ १०३ ॥ कृमिकुष्ठगुदभ्रंशगंडमालाव्रणापहः ।
कोविदारोपि तद्वत्स्यात्तयोः पुष्पं लघु स्मृतम् ॥ १०४ ॥ रूक्षं संग्राहि पित्तास्त्रप्रदरक्षयकासनुत् ।
ये
टीका - काञ्चनार १, काञ्चनक २, गंडारी ३, शोणपुष्पक ४, ये कचनारके नाम हैं, अब दूसरा कचनारके नाम लिखे हैं. कोविदार १, चमरिक २, कुद्दाल ३, युगपत्रक ४, ॥ १०२ ॥ कुण्डली ५, ताम्रपुष्प ६, अश्मंतक ७, स्वल्पकेसरी ८, दूसरा कचनार के नाम हैं. ये शीतल, काविज, कसेला, कफ पित्तका हारक है ॥ १०३ ॥ कृमि, कुष्ठ, गुदभ्रंश, गंडमाला, घाव, इनका हरनेवाला है, और दूसरा कचनारभी इसीके समान गुणवाला होता है, और इनका फूल हलका है ॥ १०४ ॥ रूखा, काविज, रक्तपित्त, प्रदर, क्षय, कास, इनकाभी हरनेवाला है.
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