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हरीतक्यादिवर्गः। मञ्जिष्ठा मधुरा तिक्ता कषाया स्वरवर्णकृत् । गुरु चोष्णा विषश्लेष्मशोथयोन्यक्षिकर्णरुक् ॥ १९२॥
रक्तातीसारकुष्ठास्त्रवीसर्पव्रणमेहनुत् । टीका-मंजिष्ठा १, विकसा २, जिंगी ३, समंगा ४, कालमेषिका ५, मंडूकपर्णी ६, भंडीरी ७, भंडी, योजनवल्ली ८, ॥ १९० ॥ रसायनी ९, अरुणा १०, काला ११, रक्तांगी १२, रक्तयष्टिका १२, भण्डीतकी १३, गंडीरी १४, मंजूषा१५, वस्त्ररंजनी १६, ये मंजीठके नाम हैं ॥ १९१ ॥ ये मधुर, तिक्त, कसेली, और खर तथा वर्णको करनेवाली है. तथा भारी और गरम होती है. सबप्रकारके विष, कफ, शोथ, योनिपीडा, नेत्रपीडा, कर्णपीडा, ॥ १९२ ॥ तथा रक्तातीसार, कुष्ठ, रक्तपित्त, विसर्प, घाव, और प्रमेहको हरनेवाली है.
__ अथ कुसुम्भनामगुणाः. स्यात्कुसुम्भं वह्निशिखं वस्त्ररंजकमित्यपि ॥ १९३ ॥
कुसुंभं वातलं कच्छू रक्तपित्तकफापहम् । टीका-कुसुंभ १, वह्निशिख २, वस्त्ररंजक, ३, ये कुसुंभके नाम हैं ॥ १९३ ॥ ये वातज होता है, और मूत्रकृच्छ्रका तथा रक्तपित्तका, और कफकाभी हरनेवाला है.
__ अथ लाक्षा(लाही)नामगुणाः. लाक्षा पलंकषाऽलक्तो यावो वृक्षामयो जतु ॥ १९४ ॥ लाक्षा वा हिमा बल्या स्निग्धा च तुवरा लघुः। ब्राह्मण्यङ्गारवल्ली च स्वरशाका च हञ्जिका ॥ १९५॥ अनुष्णा कफपित्तास्त्रहिक्काकासज्वरप्रणुत् । व्रणोरःक्षतवीसर्पकमिकुष्ठगदापहा ॥ १९६ ॥
अलक्तको गुणैस्तद्वद्विशेषाद्व्यङ्गनाशनः । टीका-लाक्षा १, पलंकषा २, अलक्त ३, याव ४, वृक्षामय ५, जतु ६, ये लाहीके नाम हैं ॥१९४॥ ये वर्णकों अच्छा करनेवाली है, शीतल, बलकों बढानेवाली, चिकनी, कसेली, और हलकी है. ब्राह्मणी १, अंगारवल्ली २, स्वरशाका ३, हंञ्जिका ४, ये ब्राह्मीके नाम हैं ॥ १९५ ॥ ये शीतल होती है, कफ, रक्तपित्त,
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