________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे भृङ्गाजनसुवर्णस्तु महिषाक्ष इति स्मृतः। महानीलस्तु विज्ञेयः स्वनामसमलक्षणः ॥ ३४ ॥ कुमुदः कुमुदाभः स्यात् पद्मो माणिक्यसन्निभः । हिरण्याक्षस्तु हेमाभः पंचानां लिंगमीरितम् ॥ ३५॥ महिषाक्षो महानीलो गजेंद्राणां हि तावुभौ। हयानां कुमुदः पद्मः स्वस्त्यारोग्यकरौ परौ ॥ ३६ ॥ विशेषेण मनुष्याणां कनकः परिकीर्तितः । कदाचिन्महिषाक्षश्च यतः कैश्चिन्नृणामपि ॥ ३७॥ गुग्गुलर्विषदस्तिक्तो वीर्योष्णः पित्तलः सरः । कषायः कटुकः पाके कटुरूक्षो लघुः परः ॥ ३८ ॥ भग्नसंधानकद् वृष्यः सूक्ष्मः स्वयर्यो रसायनः।
दीपनः पिच्छलो बल्यः कफवातव्रणापची ॥ ३९ ॥ टीका-गुग्गुल ?, देवधूप २, जटायु ३, कौशिकपुर ४, कुस्तालु ५, खलक ६, ये गूगलके नाम नपुंसकलिंगमें कहे हैं. और महिषाक्ष १, पलंकष, येभी नाम हैं ॥ ३२ ॥ महिषाक्ष १, महानील २, कुमुद ३, पद्म ४, हिरण्य, येभी गूगलके नाम हैं ॥ ३३ ॥ जो गूगल भोराके समान कालेरंगका हो उसे महिषाक्ष कहते हैं, और महानील अपने नामके बरावर लक्षणवाला होता है ॥ ३४ ॥ और कुमुद सफेद कमलके समान तथा पद्ममणिके सदृश कहा है, और हिरण्याक्षका सुवर्णकासा रंग होता है, इसप्रकार पांचोंका लक्षण कहा है ॥ ३५ ॥ महिषाक्ष और महानील ये दोनों हथियोंकों हितकारक है, और घोडानकों कुमुद तथा पद्म ये दोनों आरोग्य करनेवाले हैं ॥ ३६॥ और विशेषकरके कनक मनुष्यनकों हितकारक है, कभीकभी महिषाक्षभी मनुष्योंकों हितकारक है ॥ ३७॥ ये गूगल विषद है, तिक्त है, वीर्यमें गरम है, पित्तकों पैदा करता है, सर है, कसैला है, कडवा है, और पाकमें कटु है,
और रूखा है, तथा बहुत हलका होता है ॥ ३८ ॥ और टूटे हाडौंको जोडनेवाला है, पुष्ट है, सूक्ष्म स्वरकों अच्छा करनेवाला है, और रसायन है, दीपन, और च. पेदार तथा बलकों बढानेवाला होता है, और कफ, वात, घाव, अपची, इनका नाश करता है ॥ ३९ ॥
For Private and Personal Use Only