________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे टीका-शैलेय १, शिलापुष्प २, वृद्ध ३, कालानुसार्यक ४, ये भूरछरीलके नाम हैं. ये शीतल, हृदयका प्रिय करनेवाला, कफपित्तका हरनेवाला है ॥९०॥ और खुजली, कुष्ठ, पथरी, दाह, तथा विष, इनका हरनेवाला है, और गुदाके रक्तका हारक है इसको लौकिकमें वालछड वोलते हैं.
अथ मुस्ता(नागरमोथा)नामगुणाः. मुस्तकं च स्त्रियां मुस्तं त्रिषु वारिदनामकम् ॥ ९१ ॥ कुरुविन्द असंख्यातोऽपरः कोडकसेरुकः। भद्रमुस्तं च गुन्द्रा च तथा नागरमुस्तकः ॥ ९२ ॥ मुस्तं कटु हिमं ग्राहि तिक्तं दीपनपाचनम् । कायं कफपित्तास्त्रज्वरारुचिजन्तुहृत् ॥ ९३ ॥ अनूपदेशे यजातं मुस्तकं तत् प्रशस्यते।
तत्रापि मुनिभिः प्रोक्तं वरं नागरमुस्तकम् ॥ ९४ ॥ टीका-मुस्तक १, मुस्त २, वारिद ३, ॥ ९१ ॥ कुरुविंद ४, संख्यात ५, क्रोड ६, कसेरुक ७, भद्रमुस्त ८, गुन्द्रा ९, नागरमुस्तक १०, ये नागरमोथाके नाम हैं ॥ ९२ ॥ ये कडवा और शीतल है, दस्तोंकों रोकनेवाला है, तिक्त और दीपन है, पाचन है कसेला है, कफ, रक्त, पित्त, तृषा, ज्वर, अरुचि, और कृमि इनका हरनेवाला है ॥ ९३ ॥ और अनूप देशका उत्पन्न भया नागरमोथा उत्तम कहा है ये मुनियोंने इस्मेंभी नागरमोथा श्रेष्ठ कहा है ॥ ९४ ॥
अथ कचूरनामगुणाः. क—रो वेधमुखश्च द्राविडः कल्पकः शटी । क—रो दीपनो रुच्यः कटुकस्तिक्त एव च ॥९५॥ सुगंधिः कटुपाकः स्यात् कुष्ठाझेव्रणकासनुत् ।
उष्णो लघुर्हरेच्छासं गुल्मवातकफकृमीन् ॥ ९६ ॥ टीका-कचूर १, वेदमुख्य २, द्राविड ३, कल्पक ४, शटी ५, ये कचूरके नाम हैं; ये दीपन, है रुचिकारक, कडवा, और तिक्त है ॥ ९५ ॥ सुगंधियुक्त और पाकमें कटु होता है, तथा कुष्ठ, बवासीर, घाव, और कास, इनकाभी हारक
For Private and Personal Use Only