________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे प्रियङ्गुः शीतला तिक्ता तुवरानिलपित्तहत् । रक्तातियोगदौर्गन्ध्यस्वेददाहज्वरापहा ॥ १०२॥ गुल्मतृविषमोहनी तद्वद्गन्धप्रियङ्गुका। तत्फलं मधुरं रूक्षं कषायं शीतलं गुरु ॥ १०३ ॥
विवन्धाध्मानबलकत् संग्राही कफपित्तजित् । टीका-प्रियंगु, फलनी, कान्ता, लता, महिलाहया, गुन्द्रा, गुन्द्रफला, श्यामा, विष्वक्सेना, अंगनामिया, ये प्रियंगुके नाम हैं ॥ १०१॥ ये शीतल, तिक्त, कसेला, वातपित्तका हरनेवाला, और रक्तका अतियोग है, दुर्गंधता, पसीना, दाह, ज्वर, इनका हरनेवाला है ॥ १०२ ॥ तथा वायगोला, तृषा, विष, इनकाभी हारक है,
और इसीके समानगन्ध प्रियंगुभी है, उसका फल मधुर, रूखा, कसेला, और शीतल, होता है, और भारी होता है ॥ १०३ ॥ विवंध, अफरा, और बल इनकों करनेवाला है, तथा मलका अवरोध करनेवाला है, कफपित्तका हरनेवाला है.
अथ रेणुकामरिचसहशा. रेणुका राजपुत्री च नन्दिनी कपिला द्विजा ॥ १०४ ॥ भस्मगन्धा पाण्डुपुत्री स्मृता कौन्ती हरेणुका । रेणुका कटुका पाके तिक्ता चोष्णा कटुर्लघुः ॥ १०५॥ पित्तला दीपनी मेध्या पाचनी गर्भपातिनी ।
बलासवातकच्चैव तृटुकण्डविषदाहनुत् ॥ १०६ ॥ टीका-ये मिरचके सदृश सुगंधद्रव्य होता है, रेणुका १, राजपुत्री २, नन्दनी ३, कपिला ४, द्विजा ॥ १०४ ॥ भस्मगंधा ५, पाण्डुपुत्री ६, कौन्ती ७, हरेणुका ८, ये रेणुकाके नाम हैं. ये पाकमें कडवी, तिक्त, गरम, कटु, हलकी, ॥ १०५ ॥ और पित्तकों करनेवाली, दीपन, बुद्धिको बढानेवाली, पाचन, गर्मिकों गिरानेवाली है, कफवातकारक तथा तृषा, खुजली, विष, दाह, इनकी हारक है ॥ १०६॥
अथ ग्रंथिपर्ण(ठिवन)नामगुणाः. ग्रन्थिपर्ण ग्रन्थिकं च काकपुच्छं च गुच्छकम् ।
For Private and Personal Use Only