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हरीतक्यादिनिघंटे
टीका - लहसुन १, रसोन २, उग्रगन्ध ३, महौषध ४, ॥ २९८ ॥ अरिष्ट ५, म्लेच्छकन्द ६, यवनेष्ट ७, रसोनक ८, ये लहसुनके नाम हैं.
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तदा ततोऽपतद्विन्दुः सरसो नोऽभवद्भुवि ॥ २१९ ॥ पंचभिश्च रसैर्युक्तो रसेनाम्लेन वर्जितः । तस्माद्रसोन इत्युक्तो द्रव्याणां गुणवेदिभिः ॥ २२० ॥ कटुकश्चापि मूलेषु तिक्तः पत्रेषु संस्थितः । नाले कषाय उद्दिष्टो नालाये लवणः स्मृतः ॥ २२१ ॥ बीजे तु मधुरः प्रोक्तो रसस्तद्गुणवेदिभिः । रसोनो बृंहणो वृष्यः स्निग्धोष्णः पाचनः सरः ॥ २२२ ॥ रसे पाके च कटुकस्तीक्ष्णो मधुरको मतः ।
टीका -- जब उस्से पृथ्वीपर बूंद, गिरी तिसका लहसुन होता है || २१९ ॥ पांचरसोंसे युक्त और अम्लरस से रहित होता है. इसलिये द्रव्योंके गुण जाननेवालोंनें रसोत नाम कहा है ॥ २२० ॥ ये मूलमें कडवा है, और पत्र में तिक्त रहता है, और नालमें कसेला, और नालके अग्रभागमें लवण ऐसा कहते हैं ।। २२१ ॥ और बीज में मधुर याप्रकार इसके रस कहे हैं. ये समस्त धातुओंकों बढानेवाली है, और कामदेवको प्रबल करती है, और स्निग्ध, उष्ण, तथा पाचन, दस्ताव - र होता है ।। २२२ ।। और रस और पाकमें कडवा, तीक्ष्ण, गरम, और मधुरभी होता है.
भग्नसन्धानकृत् कण्ठ्यो गुरुः पित्तास्रवृद्धिदः ॥ २२३॥ बलवर्णकरो मेधाहितो नेत्र्यो रसायनः ।
टीका - टूटेहाडका जोडनेवाला, कंठके हित, भारी, रक्तपित्तकों बढानेवाला, होता है ।। २२३ ।। वलकों तथा वर्णकों बढानेवाला है, कांतिकों करनेवाला है, नेत्रों का हित करनेवाला है, और रसायन होता है, हृद्रोगजीर्णज्वरकुक्षिशुलविबन्धगुल्मारुचिकासशोफान् ॥ २२४ ॥ दुर्नामकुष्ठानलसादजन्तुसमीरणाश्वासकफांश्च हन्ति । मद्यं मांसं तथाम्लं च हितं लशुनसेविनाम् ॥ २२५ ॥ व्यायाममातपं रोषमतिनीरं पयो गुडम् ।
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