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कर्पूरादिवर्गः।
अथ कस्तूरीनामगुणाः. मृगनाभिर्मुगमदः कथितस्तु सहस्त्रभित् ॥ ५॥ कस्तूरिका च कस्तूरी वेधमुख्या च सा स्मृता । काश्मरी कपिलच्छाया कस्तूरी त्रिविधा स्मृता ॥ ६॥ कामरूपोद्भवा श्रेष्ठा नैपाली मध्यमा भवेत् । कामरूपोद्भवा कृष्णा नैपाली नीलवर्णयुक् ॥७॥ काश्मीरदेशसंभूता कस्तूरी ह्यधमा मता। कस्तूरिका कटुस्तिक्ता क्षारोष्णा शुक्रला गुरुः ॥ ८॥
कफवातविषच्छर्दिशीतदौर्गन्ध्यशोषहत् । ठीका-मृगनाभि १, मृगमद ?, सहस्रभित् ३, ये कस्तूरीके नाम हैं ॥५॥ और कस्तूरिका ?, कस्तूरी २, वेधमुख्या ३, ये दूसरीके नाम हैं. काश्मरी १, कपिलच्छाया २, कस्तूरी ३, ये तीसरीके नाम है. ऐसे तीन प्रकारकी कस्तूरी लिखी है ॥ ६ ॥ जो कस्तूरी कामरूपदेशमें उत्पन्न होती है वोह श्रेष्ठ है, और जो नेपालमें होती है वो मध्यम होती है. कामरूपमें काली और नेपालमें नीली होती है ॥ ७॥ जो कस्तूरी काश्मीरदेशमें उत्पन्न होती है वह अधम कही है. कस्तूरी कडवी होती है, तिक्त, क्षार, गरम, शुक्रकों पैदा करनेवाली ॥ ८॥ तथा भारी होती है, और कफ, वात, विष, वमन, तथा शीत, दुर्गंधिता, शोष, इनको हरनेवाली है.
अथ कस्तूरिका(मुस्कदाना)गुणाः, लता कस्तूरिका तिक्ता स्वादी वृष्या हिमा लघुः ॥ ९॥
चक्षुष्या छेदिनी श्लेष्मतृष्णाबस्त्यास्यरोगहृत् ।। टीका-कस्तूरिका लता, तिक्त, और मधुर होती है, तथा पुष्ट, शीतल, और हलकी होती है ॥ ९॥ नेत्रोंकों हित करनेवाली है, तथा छेदन करनेवाली है, कफ, प्यास, तथा पेडू, और मुखके रोग इनको हरनेवाली है.
अथ गन्धमार्जारवीर्यगुणाः. गन्धमार्जारवीर्य तु वीर्यकत् कफवातहत् ॥ १० ॥
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