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हरीतक्यादिनिघंटे
अथ लक्षणम्. यथा स्यात् क्षीरकाकोली काकोल्यपि तथा भवेत् ॥१३४॥
एषा किञ्चिद्भवेत्कृष्णा भेदोऽयमुभयोरपि । टीका-अब काकोली क्षीरकाकोलीके लक्षण लिखते हैं. जैसी क्षीरकाकोली होती है वैसीही काकोलीभी होती है ॥ १३४ ॥ काकोली किंचित् काली होती है इतनाही भेद जानो.
अथ नामगुणाः. काकोली वायसोली च वीरा कायस्थिका तथा ॥ १३५॥ सा शुक्ला क्षीरकाकोली वयस्था क्षीरवल्लिका। कथिता क्षीरिणी धारा क्षीरशुक्ला पयस्विनी ॥ १३६ ॥ काकोलीयुगलं शीतं शुक्रलं मधुरं गुरु ।
बृंहणं वातदाहास्त्रपित्तशोषज्वरापहम् । १३७ ॥ टीका-अब काकोली क्षीरकाकोलीके नाम और गुण लिखते हैं. काकोली १, वायसोली २, वीरा ३, कायस्थिका ४, ये चार काकोलीके नाम हैं ॥ १३५ ॥
और ये सफेद होती है. और वयस्था १, क्षीरवल्लिका २, क्षीरकाकोली ३, क्षीरिणी ४, धारा ५, क्षीरशुक्ला ६, पयस्विनी ७, ये सात नाम क्षीरकाकोलीके हैं ॥ १३६ ॥ ये दोनों काकोली शीतल हैं, और शुक्रको बढानेवाली हैं, तथा मधुर और भारी हैं, और धातुओंको बढानेवाली हैं, वात, दाह, रक्त, पित्त, सूजन, ज्वर, इनको हरनेवाली हैं ॥ १३७ ॥
अन्यच्च दूसरे ग्रंथकारोंने इसके १२ बारह नाम लिखे हैं. काकोली १, मधुरा २, वीरा ३, कायस्था ४, क्षीरशक्तिका ५, ध्वांक्षोली ६, वायसोली ७, खादुमांसी ८, पयस्विनी ९, दूसरी क्षीरकाकोली १०, सुराहा ११, क्षीरिणी १२,
. अथ ऋद्विद्धिनामगुणाः. ऋद्धिद्धिश्च कन्दौ द्वौ भवतः कोशयामले । शीतलोमान्वितः कन्दो लताजातः सुरंध्रकः ॥ १३८ ॥ स एव ऋद्धिवृद्धी च भेदमप्येतयोर्बुवे ।
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