Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्ड
श्रीवज्रचमरगणधरदेवर्म्मोदलागि नूरमूवर्गणभू
देवरभिनंदनंगेनलावं बण्णिपनु महिमेयं केवलिया ॥४॥ १०३ श्रीवज्रनामगणधरदेवं मोदलागि नूरपदिनारम्पर् । केवल सुमति गणधर रावगमंगादिविविधशास्त्रकृतिज्ञर् ॥५॥११६ श्रीचमरं मोदलादभूचक्रविनु तगणधर पंद्मप्रभवाचामगोचरं गुच्चाचार व रधिकरेकादशदि ॥६॥ १११ अपवर्गमार्गनिरतैर्सुपार्श्वजिननाथनल्लि तो बत्तय्वर्लपि - तर्बलदेवादिगळुपमातीतप्रभावगणधर देवर् ॥७॥९५ दत्तमदलागिर्द सुवृत्तर्गणधररु चंद्रनायगे जगद्वृत्तैविषयावबोधंगुत्तमरेऴ्गुंदिद नर्वरप्पर्थ्यातर् ॥८॥९३ सुविधिगे वैदर्भमों दिल वरागिरे गणघरकळे भर्त्तण्बर् । सुविधिमुखविधुविनिर्गतभुवनस्तुत दिव्यवाक्सुधा रसपात्रैर् ॥९॥८८ शीतलजिनंगे नागं ख्यातं मोदलागि गणधरच्चंतुरमलज्योतिर्मय बत्तेभूतळपतिपूजितांघ्रियुगसरसिरुहरू ॥ १०॥८७ श्रेयोजिनंगे कुंथु ज्यायं मोदलागि गणधरर्हेयोपा- । यमनरिपुवर खिलविनेयर्ग पत्तुमधिकमेळरिनप्पर् ॥ ११ ॥७७
श्री वज्रचमर गणधरदेव आदि एक सौ तीन गणधर अभिनन्दन स्वामीके थे । उन भगवान् केवलीकी महिमाका वर्णन कौन कर सकता है ?|| ४ ||
केवलज्ञानी सुमतिनाथ भगवान् के श्री वज्र नामक गणधर देव आदि एक सौ सोलह गणधर थे । वे अंग आदि विविध शास्त्रोंकी कृतिके ज्ञाता थे ||५||
वचनोंके अगोचर भगवान् पद्मप्रभके श्री चमर आदि एक सौ ग्यारह गणधर थे, जिनकी स्तुति समस्त पृथ्वीमण्डल करता है और जो श्रेष्ठ आचारके धारक थे ||६||
भगवान् सुपार्श्वनाथ के बलदेव आदि पंचानवे गणधर थे जो मोक्षमार्गमें तत्पर तथा अनुपम प्रभावशाली थे ॥७॥
जगत् के वृत्त विषयको जाननेवाले भगवान् चन्द्रनाथके, श्रेष्ठ चारित्रके धारक दत्त आदि उत्तम गणधर सौमें सात कम अर्थात् तिरानके प्रसिद्ध थे ||८||
भगवान् सुविधिनाथ वैदर्भ आदि अठासी गणधर थे जो भगवान् सुविधिनाथके मुखचन्द्रसे झरते हुए तथा त्रिलोकके द्वारा स्तुत दिव्यवाणी रूप अमृत रसके पात्र ॥९॥
शीतलनाथ जिनेन्द्र के चार निर्मल ज्ञानज्योतिके धारी प्रसिद्ध नाग आदि सत्तासी गणधर थे। उनके चरण भूमण्डलके स्वामियोंके द्वारा पूजे जाते थे ॥१०॥
भगवान् श्रेयांसनाथके कुन्थुज्याय आदि सात अधिक सत्तर अर्थात ७७ गणधर थे ।
म
१. मनू । २. म वाचा । ३. त्सु । तस्सुं । ४. नाथगे । ६. मपात्रं । ७. क जायं । ८. हेयापादेय । ९. मनरिं ।
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५. वृत्त ।
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