Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे बहुतरवदिदं वैक्रियिकमिश्रयोगिप्रमाणमल्पमेंदितु तद्राशिगळु साधिकं माडल्पटुवु । देवनारककाययोगिराशिद्वयमं कूडिदोडावुदोंदु राशिप्रमाणं आ राशिय प्रमाणं वैक्रियिककाययोगिराशियक्कुं। त्रियोगिराशियोलावुदोंदु काययोगिप्रमाणं पिदेपेळल्पटु १॥ १३६० दरोळु
४। ६५ = ११ १७०१ तिर्यग्मनुष्यसंबंध्यौदारिकाहारक काययोगिसंख्याद्वयहीनमप्प तद्राशिप्रमाणमे वैक्रियिककाययोगि ५ जोवराशियक्कुमेंबुदथं - १॥ १३६० = तु शब्द मी विशेषमं सूचिसुगुं।
४।६५ = १ । १७०१ आहारकायजोगा चउवण्णं होंति एक्कसमयम्मि ।
आहारमिस्सजोगा सत्तावीसा दु उक्कस्सा ॥२७०॥ आहारकाययोगाश्चतुःपंचाशद्भवंत्येकसमये। आहारकमिश्रयोगाः सप्तविंशतिस्तूत्कृष्टात् ॥
शेषदेवनारकेषु अनुपक्रमकालस्य बहुत्वेन वैक्रियिकमिश्रयोगिप्रमाणं
ao
१० ४। ६५ = । ८१ । १० । २ ११
अल्पमिति तद्राशयः साधिकाः कर्तव्याः । देवनारककाययोगिराशिद्वये युते यो राशिः स वैक्रियिककाययोगि
राशिर्भवति । त्रियोगिराशौ यत्काययोगिराशिप्रमाणं प्रागक्तं = १ १३६० । तन्मध्यात्तिर्य
४। ६५ । । १७०१ ग्मनुष्यसम्बन्ध्यौदारिकाहारककाययोगिसंख्याद्वये अपनीते यावदवशिष्यते स वैक्रियिककाययोगिजीवराशि
रित्यर्थः।
= १।१३६० = । तुशब्दः इमं विशेष सूचयति ॥२६९।। ४। ६५ = १।१७०१
१५ माणको मिलानेपर जो राशि हो,वह सर्ववैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवोंकी राशि होती है।
व्यन्तर देवोंके सिवाय शेष देव नारकियोंका अनुपक्रम काल बहुत है, इसलिए उनमें वैक्रियिक मिश्रयोगियोंका प्रमाण अल्प है। अतः वैक्रियिक मिश्रयोगके धारक व्यन्तरदेव बहुत हैं,इसलिए उनको साधिक कर लेना चाहिए। काययोगके धारी देवों और नारकियोंके
परिमाणको मिलानेसे जो राशि हो,उतना वैक्रियिक काययोगके धारी जीवोंका प्रमाण होता २० है। पूर्व में जो तीन योगवाले जीवोंके परिमाणमें काययोगके धारी जीवोंका परिमाण कहा
था, उसमें-से तिर्यंच और मनुष्य सम्बन्धी औदारिक तथा आहारक काययोगके धारक जीवोंका परिमाण घटानेपर जो शेष रहे,उतने वैक्रियिक काययोगके धारक जीव जानना। गाथामें आगत 'तु' शब्द इस विशेष अर्थको सूचित करता है ।।२६९।।
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