Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 525
________________ ४६७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ___ तृणाग्नि । कारीषाग्नि । इष्टकापाकाग्नि सदृशस्त्रीपुरुषोभयाभिलाषरूपजीव परिणामंगळ तीव्रवेदनळिंदमावुदोंदु संक्लेशमा, संक्लेशदिदमुन्मुक्तरुमनिवृत्तिकरणापगतदेदभावं मोदगाउ योगिचरमसमयपथ्यंतं भावदिद गुणस्थानातीतरप्प सिद्धपरमेष्ठिगळु द्रव्यभावदिदं वेदोदयजनितकामवेदनोन्मुक्तरु मोळरु, किविशिष्टरेते दोडे स्वकसंभवानंतवरसौख्याः शुद्धज्ञानदर्शनोपयोग लक्षणस्वात्मोत्थानंतानंतमुख्यसुखसंपन्नरुगळु । एत्तलानुमपगतवेदानिवृत्तिकरणादिगळ्ये वेदोदयजनितकामवेदनारूप'संक्लेशाभावमादोडं गुणस्थानातीतमुक्तात्मरुगळ्गे स्वात्मोत्थसुखसद्भावं ज्ञानादिगुणसद्भावमें तंते तोरुल्पटुदु। परमार्थवृत्तियिदं मत्तमपगतवेदरुगळ्गेनिवर्ग, ज्ञानोप योगस्वास्थ्यलक्षणपरमानंदजीवस्वभावमप्पुदितु निश्चयिसल्पडुवुटु । अनंतरं वेदमार्गयोळु जीवसंख्याप्ररूपणात्थं गाथापंचकमं पेळ्दपरु । जोइसियवाणजोणिणितिरिक्खपुरिसा य सणिणो जीवा । तत्तेउपम्मलेस्सा संखगुणूणा कमेणेदे ॥२७७॥ ज्योतिष्कवानयोनिमत्तिर्म्यक्पुरुषाश्च संजिनो जीवाः । तत्तेजःपद्मलेश्याः संख्यगुणोनाः क्रमेणते॥ तृणाग्निकारीषाग्नीष्टिकापाकाग्निसदृशस्त्रीपुरुषोभयाभिलाषरूपजीवपरिणामानां तीव्रवेदनाभिः यः संक्लेशः तेनोन्मुक्तः अनिवृत्तिकरणादपगतवेदभागादारभ्यायोगिचरमसमयपर्यन्ताः, भावेन गुणस्थानातीतसिद्ध- १५ परमेष्ठिनश्च द्रव्यभावाम्यां वेदोदयजनितकामवेदनोन्मुक्ताः सन्ति । किविशिष्टाः ? स्वकसंभवानन्तवरसौख्या:शुद्धज्ञानदर्शनोपयोगलक्षणात्मोत्थानन्तानन्तमुख्यसुखसंपन्नाः ।, यद्यपि अपगतवेदानिवृत्तिकरणादीनां वेदोदयजनितकामवेदनारूपसंक्लेशाभावः तथापि गुणस्थानातीतमुक्तात्मनां स्वात्मोत्थसुखसद्भावः ज्ञानादिगुणसद्भाववद्दर्शितः। परमार्थवृत्त्या पुनः अपगतवेदानामेषामपि ज्ञानोपयोगस्वास्थ्यलक्षणपरमानन्दो जीवस्तभावोऽस्तीति निश्चेतव्यम् ।।२७६।। अय वेदमार्गणायां जीवसंख्यां गाथापञ्च केन प्ररूपयति २० पुरुषवेदीका परिणाम तृणकी आगके समान होता है। स्त्रीवेदीका परिणाम कंडेकी आगके समान होता है। और नपुंसक वेदीका परिणाम पजावेकी आगके समान होता है। इन तीनों ही अग्नियोंके समान स्त्री, पुरुष और स्त्री-पुरुषकी अभिलाषा रूप परिणामोंकी तीव्र वेदनासे होनेवाले संक्लेशसे रहित, भाववेदकी अपेक्षा अनिवृत्तिकरणके अवेद भागसे लेकर अयोगकेवली गुणस्थानके अन्तिम समयपर्यन्त जीव तथा गुणस्थान रहित सिद्ध- २५ परमेष्ठी द्रव्यवेद और भाववेदके उदयसे होनेवाली कामवेदनासे उन्मुक्त हैं। तथा वे शुद्ध ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग लक्षणवाली आत्मासे उत्पन्न हुए अनन्त सुखसे सम्पन्न होते हैं । यद्यपि अनिवृत्तिकरणके अवेद भागसे ही वेदके उदयसे होनेवाली वेदनारूप संक्लेशका अभाव होता है,तथापि गुणस्थानातीत मुक्तात्माओंके ज्ञानादि गुणके सद्भावकी तरह आत्मिक सुखका सद्भाव दिखलाया है। परमार्थसे तो वेदोंका अभाववाले गुणस्थानवी जीवोंके भी ३० ज्ञानोपयोग तथा स्वास्थ्य लक्षणरूप परमानन्द जीवस्वभाव रहता है। ऐसा निश्चय जानना ॥२७६॥ १. म पस्वभावमा । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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