Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
जीवप्रमाण संख्यातरूपहीन संसारिराशियंसंस्थापिति बहुभागे समभागो च उहमित्यादिसूत्र - विधानदिदमे लोभादिकषायोदयपरिणतजीवसंख्य गळ् तरत्पडुवुवु वाथवा स्वस्वकालमप्प द्वींद्रियादि विधानाऽऽनीताल्पबहुत्वमनंतर्मुहूर्तमात्रमप्प लोभादिकषायोदयकालमनाश्रयिसि लोभादिकषायपरिणतजीव संख्येगळ् तरल्पडुववल्लि त्रैराशिकं माडल्पडुवुवल्लिदे ते दोर्ड इनितु कालदोळे त्तलानु५ मितु जीवंगळ पडेयल्पडुवुवागजिनितु कालदोळेनितु जीवंगळ पडेयल्पडुवुर्वेदतु त्रैराशिकमं
माडि प्र = २१ । फ १ । ३ इ = का =
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२१ । ८४२४ अपर्वाततलब्धं लोभकषायोदय४ । ६५६१
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परिणतमनुष्यजीवंगळ प्रमाणमक्कु
मनुष्यजीवराशिप्रमाणमिदु १ । ३ । ६१२० क्रोधकषायोदयपरिणतमनुष्यजीवराशिप्रमाणमिदु
४ । ६५६१
१३
८४२४
४ । ६५६१
चहमित्यादिसूत्रोक्तविधानेनैव लोभादिपरिणतजीवसंख्या आनेतव्या, तथा तिर्यग्गतौ देवनारकमनुष्य संख्योनसंसार राशि संस्थाप्य बहुभागे समभागो चउण्हमित्यादिसूत्रोक्तविधानेन च लोभादिकषायोदयपरिणतजीवसंख्यातव्या, अथवा अन्तर्मुहूर्तमात्रात् सामान्य कषायोदय कालात् द्वीन्द्रियादिविधानानीतं स्वस्वलोभादिकषायोदयकालमाश्रित्य लोभादिकषायोदयपरिणतजीवसंख्यानेतव्या । तद्यथा - एतावति काले यद्यतावन्तो जीवा
मायाकषायोदयपरिणत
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लभ्यन्ते तदा एतावति काले कियन्तो जीवा लभ्यन्ते इति त्रैराशिकं कृत्वा - प्र २१, फ १ । ३,
४,
इ २१, ८४२४ अपवर्तिते लब्धं लोभकषायोदयपरिणतमनुष्य जीवराशिप्रमाणं भवति । ६५६१
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तथा मायाकषायोदयपरिणतमनुष्यजीवराशिप्रमाणं १३, ६१२० क्रोधकषायोदयपरिणतमनुष्य राशिप्रमाणं ४, ६५६१
३, ८४२४ ४, ६५६१
मनुष्यों का परिमाण आता है। अलग रखे एक भागमें आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देकर एक भागको अलग रख शेष बहुभागको क्रोध कषायको मिले समान भाग में मिलाने पर क्रोधी मनुष्यों का परिमाण आता है। शेष अलग रखे एक भागको मान कषायको दिये समान भागमें मिलाने पर मान कषायी मनुष्योंका परिमाण आता है। ऐसे ही तिर्यचोंमें जानना । २० विशेष इतना कि तिर्यंचोंमें तियंच गतिके जीवोंकी संख्या जो देव नारक मनुष्योंकी राशिसे
न संसारी जीवराशि परिमाण है, स्थापित करके उसमें आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देना चाहिए । शेष विधि पूर्ववत् जानना ।
अथवा सामान्य कषायके उदयकाल अन्तर्मुहूर्त मात्रसे दोइन्द्रिय आदिकी विधि लाये गये अपने-अपने लोभ आदि कषायके उदयकालको लेकर लोभादि कषायरूप परिणत जीवोंकी संख्या लानी चाहिये । वह इस प्रकार है
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चारों कषायका काल जो अन्तर्मुहूर्तमात्र है, उसमें आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देकर एक भागको अलग रखना । शेष बहुभागके चार भाग करके चार जगह समान
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