Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 535
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका लट्ठ-कट्ठ- वेत्ते यि मेएणणुहरंतओ माणो । णारयतिरियणरामर गईसु उप्पायओ कमसो || २८५॥ शैलास्थिकाष्ठवेत्रान् निजभेदेनानुहरन् मानः । नारकतिर्य्यग्नरामरगतिषूत्पादकः क्रमशः ॥ शिलास्थिकाष्ठवेत्रान् शैलास्थिकाष्ठवे गळनु निजोत्कृष्टादिशक्ति भेर्वाददमनुहरन् उपनीयमानुमानकषायं क्रमशः क्रमदद नारकतिर्य्यग्नरामरगतिगळोळ जीवनं पुट्टि सुगुमदे तें दोडे शिलास मानोत्कृष्ट शक्तियुक्तमानकषायं जीवनं नारकगतियो पुट्टिसुगुमस्थिसमानानुत्कृष्टशक्ति युक्तमानकषायं जीवनं तिर्य्यग्गतियोपुट्टिसुगुं काष्ठसमानाजघन्यशक्तियुक्तमानकषायं मनुष्यगतियो जीवनं पुट्टसुगुं वेत्रसमानजघन्यशक्तियुक्तमानकषायं जीवनं देवगतियोपुट्टि सुगुमे तीगळु चिरतरादिकालंगळदमल्लदे शिलास्थिकाष्ठवेत्रंगळ मणिइसल्बारवंते उत्कृष्टादि शक्तियुक्तमान - कषायपरिणतजीवनुमंतप्प कालंगळदमल्लदे मानमनपहरिसि विनयरूपमप्प नमनमं माडलु १० शक्तनले दिंतु सादृश्यसंभवमिल्लेंदरियल्पडुगुं । तत्तच्छक्तियुक्तमानकषायपरिणतजीवं तत्तद्गत्युत्पत्तिहेतु तत्तदायुत्यानुपूव्वनामादिकर्मबंधक नक्कुमं बुबिदु तात्पर्य्यात्थं । ४७७ शैलास्थिकाष्ठवेत्रान् निजोत्कृष्टादिशक्तिभेदैरनुहरन् उपमीयमानो मानकषायः क्रमशः क्रमेण नारकतिर्यग्नरामरगतिषु जीवमुत्सादयति । तद्यथा - शिलास्तम्भसमानोत्कृष्टशक्तियुक्तमानकषायो जीवं नारकगतावुत्पादयति । अस्थिसमानानुत्कृष्टशक्तियुक्तमानकषायो जीवं तिर्यग्गतावुत्पादयति । काष्ठसमानाजघन्य शक्ति- १५ युक्तमानकषायो मनुष्यगतौ जीवमुत्पादयति । वेत्रसमानजघन्यशक्तियुक्तमानकषायो जीवं देवगतावुत्पादयति । यथा हि चिरतरादिकालैर्विना शैलास्थि काष्ठवेत्राः नामयितुं न शक्यन्ते तथोत्कृष्टादिशक्तिर्युक्तमानपरिणतो जीवोऽपि तथाविधकार्लेविना मानं परिहृत्य विनयरूपनमनं कर्तुं न शक्नोतीति सादृश्यसंभवोऽत्र ज्ञातव्यः । तत्तच्छक्तियुक्तमानकषायपरिणतो जीवः तत्तद्गत्युत्पत्तिहेतुतत्तदायुर्गत्यानुपूर्वीनामादिकर्म बनातीति तात्पर्यम् ॥२८५॥ Jain Education International चिरकाल, शीघ्र और अतिशीघ्र कालोंके बिना भरती नहीं है वैसे ही उत्कृष्ट आदि शक्तिसे युक्त क्रोधरूप परिणमा जीव भी उस प्रकारके कालके बिना क्षमा भाव धारणके योग्य नहीं होता है इस प्रकार उपमान और उपमेयमें समानता बनती है ||२८४|| शैल, अस्थि, काष्ठ और बेंत को अपनी उत्कृष्ट आदि शक्तिके भेदोंसे उपमा बनाने - वाली मानकषाय क्रमसे जीवको नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगतिमें उत्पन्न २५ कराती है । उसका स्पष्टीकरण - पत्थर के स्तम्भके समान उत्कृष्ट शक्ति से युक्त मानकषाय जीवको नरकगति में उत्पन्न कराती है । अस्थिके समान अनुत्कृष्ट शक्तिसे युक्त मानकषाय जीवको तियंचगति में उत्पन्न कराती है । काष्ठके समान अजघन्य शक्तिसे युक्त मानकषाय जीवको मनुष्यगति में उत्पन्न कराती है। बेंतके समान जघन्य शक्तिसे युक्त मानकषाय जीवको देवगति में उत्पन्न कराती है। जैसे चिरतर आदि समयके बिना पत्थर, हड्डी, काठ ३० और तो नमाना शक्य नहीं है वैसे ही उत्कृष्ट आदि शक्तिसे युक्त मानकषायरूप परिणत जीव भी उस प्रकारके कालोंके बिना मानको त्यागकर विनयरूप नमन करनेमें समर्थ नहीं होता है इस प्रकार समानता जानना । इसका आशय यह है कि उस उस शक्तिसे युक्त मानकषायरूप परिणत जीव उस उस गतिमें उत्पत्तिके कारण उस उस गति, आयु और आनुपूर्वी नामकर्मका बन्ध करता है ||२८५ || For Private & Personal Use Only २० ३५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564