Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 519
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४६१ आहारककाययोगिगळेकसमयदोळ् युगपत् चतुःपंचाशत्प्रमितरप्पर। आहारकमिश्रकाययोगिगळेकसमयदोळ युगपत्सप्तविंशतिप्रमितरप्परु । एकसमये तूत्कृष्टात बी विशेषणद्वयं पिद पेळल्पट्ट गत्यादिजीवसंख्येगळ्गं वक्ष्यमाणजीवसंख्यगळ्गमुं संबंधिसल्पडुवुदिल्लि मध्यदीपकत्वदिदं पेळल्पटुदप्पुरिदं । जघन्यसंख्यापेक्षयिदं नानाकालापेयिंदमुं संभविसुव विशेषं परमागमदोळ्नोडल्पडुवुदु । इंतु भगवदर्हत्परमेश्वर चारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमान श्रीमद्रायराजगुरुभूमंडलाचार्य्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवति श्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रत्तिश्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार कर्णाटकवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिकमोळु जीवकांडविंशतिप्ररूपणंगळोळ्नवमं योगमार्गणाप्ररूपण महाधिकार भाषितमायतु। आहारककाययोगिनः एकसमये युगपच्चतुष्पञ्चाशत्प्रमिता भवन्ति, आहारकमिश्रकाययोगिनः एकसमये युगपत्सप्तविंशतिप्रमिता भवन्ति । एकसमये उत्कृष्टादिति विशेषणद्वयं तु प्रागुक्तगत्यादिजीवसंख्याभिः वक्ष्यमाणजीवसंख्याभिश्च सम्बन्धनीयं । अत्र मध्यदोपकत्वेनोक्तत्वात । जघन्यसंख्यापेक्षया नानाकालापेक्षया च संभवन् विशेषः परमागमे द्रष्टव्यः ॥२७॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे विंशतिप्ररूपणासु योगमार्गणानाम नवमोऽधिकारः ।।९।। आहारक काययोगके धारक एक समयमें एक साथ अधिकसे अधिक चौवन होते हैं तथा आहारक मिश्रकाययोगी एक समयमें एक साथ अधिकसे अधिक सत्ताईस होते हैं । यहाँ गाथामें 'एक समयम्हि' तथा 'उक्कस्सं' ये दोनों विशेषण मध्यदीपक रूपसे कहे हैं। अतः पूर्व में जो गति आदिकी अपेक्षा जीव संख्या कही है और आगे जो जीव संख्या कहेंगे, २० वह सब उत्कृष्ट रूपसे एक समयमें जानना। अर्थात् उत्कृष्ट रूपसे एक समयमें उक्त संख्या प्रमाण जीव होते हैं, इससे कम हो सकते हैंकिन्तु अधिक नहीं हो सकते । जघन्य रूपसे तथा अनेक काल सम्बन्धी संख्या विशेष परमागमसे जानना ॥२७०।। २५ । इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें-से योग प्ररूपणा नामक नवम महा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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