Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 511
________________ ४५३ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कम्मोरालियमिस्सय ओरालद्धासु संचिद अणंता। कम्मोरालियमिस्सय ओरालियजोगिणो जीवा ॥२६४॥ कम्मौदारिकमिश्रकौदारिकाद्धासु संचितानंताः । कम्मौदारिकमिश्रकौदारिकयोगिनो जीवाः॥ कार्मणकाययोगमौदारिकमिश्रकाययोगमौदारिककाययोग; बिवर कालंगळोळ मुंदे पेळ्व ५ प्रमाणमनुळवरोळु संचितंगळप्प कार्मणकाययोगिगळुमौदारिककायमिश्रयोगिगळुमौदारिककाय योगिगळुमप्प जीवंगळु प्रत्येकमनंतानंतंगळप्पुवदेते दोडे : समयत्तयसंखावलिसंखगुणावलिसमासहिदरासी । सगसगगुणिदे थोवो असंखसंखाहदो कमसो ॥२६५।। समयत्रयसंख्यावलिसंख्यगुणावलिसमासहृतराशि । स्वकगुणगणिते स्तोकः असंख्यसंख्याहतः १० कार्मणकाययोगकालं समयत्रयमक्कुमेकें दोडे विग्रहगतियोळनाहारकसमयत्रयदोळु कार्मणकाययोगक्कये संभवमप्पुरिदं औदारिकमिश्रकाययोगक्के कालं संख्यातावलिमात्रमेकदोडंतर्मुहूर्तप्रमितापर्याप्तकालक्कये तत्कालत्वमप्पुरिदं औदारिककाययोगकालमदं नोडे संख्यातगुणमेके दोडा कालद्वयहीन सर्वकालमौदारिककाययोगकालमप्पुरिदं आ कालंगळ न्यासमिदु। १५ स ३ । २१।२१।४। इवर युति २ १५ । इवरिदं द्वियोगित्रियोगिसंख्याविहीनसंसारि राशि । क्रमशः॥ २० =२ ।४ ॥२६३।। ४ । २ ।५ ५ कार्मणकाययोगौदारिकमिश्रकाययोगौदारिककाययोगानां कालेषु वक्ष्यमाणप्रमाणेषु ये संचिताः कार्मणकाययोगिनः औदारिकमिश्रकाययोगिनः औदारिककाययोगिनश्च जीवाः ते प्रत्येकमनन्तानन्ताः भवन्ति ॥२६४॥ तद्यथा कार्मणकाययोगकालः समयत्रयं भवति विग्रहगतो अनाहारकसमयत्रये कार्मणकाययोगस्यैव संभवात् । औदारिकमिश्रकाययोगस्य कालः संख्यातावलिमात्रो भवति अन्तर्महुर्तप्रमितापर्याप्तकालस्यैव तत्कालत्वात् । औदारिककाययोगकालः ततः संख्यातगुणः तत्कालद्वयहोनसर्वकालस्यैव औदारिककाययोगकालत्वात् । तेषां पाँचसे भाग देनेपर जो लब्ध आवे,उसे एकसे गुणा करनेपर दो योगियोंमें वचन योगवालोंका प्रमाण होता है और चारसे गुणा करनेपर दो योगियों में काययोगियोंका प्रमाण २५ होता है ।।२६३॥ कार्मणकाययोग,औदारिक मिश्रकाययोग, औदारिककाययोगके आगे कहे गये कालोंमें संचित हुए कार्मणकाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी और औदारिक काययोगी जीव प्रत्येक अनन्तानन्त जानना ॥२६४॥ कार्मणकाय योगका काल तीन समय होता है, क्योंकि विग्रहगतिमें अनाहारकके तीन ३० समयोंमें कार्मणकाय योग ही सम्भव है । औदारिकमिश्र काययोगका काल संख्यात आवलिमात्र होता है,क्योंकि अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अपर्याप्तका काल ही औदारिक मिश्रका काल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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