Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 513
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४५५ ४५५ प्र२१५ फ१३। इस ३ लब्धं का = जी = प्र२१।५ फ १३% इ२१ लब्धं औ= मिश्र १३% २१ - - M - प्र२१।५ २१५ १३ =। २१४ फ १३ = । इ२११४ लब्ध औ = का २३।५ क्रमशः एंबोदरिदं धवले यब प्रथमसिद्धांतोक्तसंख्यानुक्रममनायिसि ई संख्याप्ररूपणे यम्मिदं पेळल्पटुंदेंदौद्धत्य परिहारं शास्त्रकानिदं सूचिसल्पटुदु । सोवक्कमाणुवक्कमकालो संखेज्जवासठिदिवाणे । आवलि असंखभागो संखेज्जावलिपमा कमसो ॥२६६॥ सोपक्रमानुक्रमकालो संख्यातवर्षस्थितिःवाने। आवल्यसंख्यभागः संख्येयावलिप्रमः क्रमशः॥ वैक्रियिकमिश्रकाययोगिजीवसंख्येयं वैक्रियिककाययोगिजीवसंख्येयं गाथा चतुष्टदिवं पेळल्पटुददे ते दोड जघन्यस्थितिर्दशवर्षसहस्रायुष्यवनुकळवानररुगळोळा स्थितिगे सोपक्रमकाल- १० मोदुमनुपक्रमकालमें दितेरडु भागमक्कु । मल्लि उत्पत्तिरूपक्रमस्तेन सहितः कालः सोपक्रमकाल: प्र २१।५ फ१३ = इस ३। ल । का. जी. १३ -३ प्र २ ।५ । फ१३ = ल। औ. मि. जी. १३ = २१ प्र 3 د २ ।५ । फ १३% - इ२११४ ल ओ. का. जी. १३ = । २१४ ।२१। ५ क्रमशः इत्यनेन घवलाख्यप्रथमसिद्धान्तोक्तसंख्यानुक्रममाश्रित्य उक्तेयं संख्या प्ररूपणा अस्माभिरित्यौद्धत्य- " परिहारः शास्त्रकारेण सूचितः ।।२६५॥ वैक्रियिकमिश्रकाययोगिजीवसंख्या वैक्रियिककाययोगिजीवसंख्या च गाथाचतुष्टयनोच्यते। तद्यथासंख्येयवर्षस्थितिषु दशसहस्रवर्षमात्रजघन्यायुष्केषु वानेषु देवेषु तत्स्थितेः सोपक्रमकालः अनुपक्रमकालश्चेति गाथामें 'आये 'कमसो' पदसे शास्त्रकारने यह सूचित किया है कि धवल नामक प्रथम सिद्धान्तमें कही गयी संख्याके अनुसार ही यह कथन हमने किया है। इस तरह उन्होंने , अपनी उद्धतताका परिहार किया है ।।२६५॥ ___आगे वैक्रियिक मिश्रकाययोगी और वैक्रियिककाययोगी जीवोंकी संख्या चार गाथाओंसे कहते हैं जो इस प्रकार है-संख्यात वर्षकी स्थितिवालोंमें दस हजार वर्षकी १. मनाश्रेसिपेलल्पट्टी सं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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