Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१६५
२७
व्यासमुं ४५८ तदर्होत्सेधमुं ४।८।२ मुत्कृष्टावगाहमक्कुमिल्लि भुजकोटिवधात्प्रजायते क्षेत्रफलमें दिदु ३३
३३ ४।३२ क्षेत्रफलमिदं वेदगुणं खादफलं होदि सव्वत्थ । एंदा क्षेत्रफलमुं ४।३२ वेदेयिदं गुणियिसुत्ति
३३३३ रलु ४।३२।६४ घनफलमक्कुं ८१९२ चतुरिंद्रियंगळोळु स्वयंभूरमणद्वीपापरभागकर्मभूमिप्रतिबद्धक्षेत्रत्तिभ्रमरनोळेकयोजनायाममुं । तत्त्रिचतुर्भागव्यासमु ४ मर्द्धयोजनोत्सेधमु २ मुत्कृटावगाहमक्कुमिल्लियं भुजकोटीत्यादिसूत्रानीत धनफलं ८ त्र्यष्टमभागयोजन प्रमाणमक्कुं। पंचेंद्रि- ५ यंगळोळ स्वयंभूरमणसमुद्रमध्यत्तिमहामत्स्यदोळु सहस्रयोजनायाममुं पंचशतयोजनव्यासमुं पंचाशद्विशतयोजनोत्सेधमुमुत्कृष्टावगाहमक्कुमिल्लि भुजकोटीत्यादि सूत्रानीतघनफलं। १२५००००००। सासिरदिन्नरैवत्तुलक्षयोजनंगळक्कुं। ई पद्मादिगळगे प्रदेशीकृतघनफलंगळु यथाक्रदिदं संख्यातघनांगुलंगळगी प्रकारंाळ दिप्पुवु ।
३ ३ ३ घनफलं भवति २७ । चतुरिन्द्रियेषु स्वयंभूरमणद्वीपापरभागकर्मभूमिप्रतिबद्धक्षेत्र- १० ४। ३२। ६४ वतिभ्रमरे एकयोजनायामतत्रिचतुर्भागव्यास ३ अर्धयोजनोत्सेध १ उत्कृष्टावगाहोऽस्ति । अस्य च
भुजकोटीत्यादिनानीतघनफलं
३ योजनव्यष्टमभागो भवति । पञ्चेन्द्रियेषु स्वयंभूरमणसमुद्रमध्यवर्ति
महामत्स्ये सहस्रयोजनायामपञ्चशतयोजनव्यासपञ्चाशदग्रद्विशतयोजनोत्सेधोत्कृष्टावगाहोऽस्ति । अस्य च भुजकोटीत्यादिनानीतघनफलं १२५०००००० सार्धद्वादशकोटियोजनमात्रं भवति । एतान्युक्तघनफलानि प्रदेशी- १५
योजनका तीन चौथा भाग प्रमाण लम्बा, लम्बाईके आठवें भाग ३३ चौड़ा और चौड़ाईसे आधा दर ऊँचा है । यह क्षेत्र आयत चतुरस्र अर्थात् लम्बाई लिये चौकोर है । इसलिए इसका प्रतर क्षेत्रफल भुजकोटिवध इत्यादि सूत्रके अनुसार लाया जाता है। लम्बाई-चौड़ाई में-से एकका नाम भुज और एकका नाम कोटि है । इनका वध अर्थात् गुणा करनेसे प्रतर क्षेत्रफल होता है । सो यहाँ लम्बाई है, चौड़ाई ३२ इनको परस्परमें गुणा करने पर ३४३ =६६८ २० हुआ। इसको ऊँचाई से गुणा करनेपर सत्ताईस योजनका इक्यासी सौ बानवेवाँ भाग प्रमाण ८३६३ रक्तविच्छुका घनक्षेत्रफल होता है। चतुरिन्द्रियों में स्वयम्भूरमणद्वीपके परले भागमें कर्मभूमि सम्बन्धी क्षेत्र में भ्रमर होता है। उसका उत्कृष्ट अवगाह एक योजन लम्बा, पौन योजन चौड़ा और आधा योजन ऊँचा है । 'भुजकोटिवध' के अनुसार एक योजन, पौन योजन और आधा योजनको परस्पर में गुणा करनेपर १xx३३ तीन योजनका २५ आठवाँ भाग घनक्षेत्रफल होता है। पंचेन्द्रियों में स्वयम्भरमण समुद्रके मध्यवर्ती महामत्स्यका अवगाह एक हजार योजन लम्बा, पाँच सौ योजन चौडा और दो सौ पचास योजन ऊँचा है। 'भुजकोटि' इत्यादिके अनुसार १०००४५००४२५० तीनोंको परस्परमें गुणा करने पर साढ़े बारह करोड़ १२५०००००० योजन प्रमाण घनफल होता है। इन उक्त धनफलोंको
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