Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 453
________________ pa कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३९५ एंदु भागहारमप्पुदी कारणमागि अंता पल्यासंख्यातदिदं भागिसिदोड २ प मपत्तिसि शुद्धराशियुं सूच्यंगुला संख्यातेकभागमेयकुं २ कार्मणशरीरस्थितिनानागुणहानिशलाकगळ्गे छ–व छ । प्रतिरूपं द्विकमनित्तु गितसंवर्ग माडलुत्पन्नराशिकार्मणशरीरस्थितिगन्योन्याभ्यस्तराशियक्कुमदुर्बु स्ववर्गशलाकाराशिप्रभक्तपल्यप्रमितमकुमके दोई विरलिदरासीदो पुणेत्यादि । सूत्राभिप्रायदिदं पल्यच्छेदराशिगे ऋणरूपमप्पतद्वार्गशलाकार्द्धप्रमितमं तेगदु बेरिरिसि व छ शेषपल्यच्छेदराशियं विरलिसि तावन्मात्रद्विकसंवर्गाददं पुट्टिद ऋणसहितमप्प पल्यक्क मुंपेळ्द ऋणरूपंगलं विरलिसि तावन्मात्रद्विकसंवर्गमं माडल पुट्टिद राशि पल्यवर्गशलाकाराशिप्रभितमदा ऋणसहित धनमप्प पल्यक्क हारमक्कुमप्पुरिदं । इति नियमात् प्राक्पृथक्स्थापितऋणेन व छे । अपवर्तितेन एकरूपासंख्येयभागेन पल्ये गुणिते संजात पल्यासंख्यातैकभागेन भक्त्वा २ प अपवर्तितः सूच्यङ्गलासंख्येयभाग एव भवति २। कार्मणशरीरस्थितेन ना aa गुणहानिशलाकानां छे व छे प्रतिरूपं द्विकं दत्त्वा संवर्गोत्पन्नः स्ववर्गशलाकाभक्तपल्यमात्रः तदन्योन्याभ्यस्त राशिर्भवति । प । पल्यार्धच्छेदमावद्विकसंवर्गसमत्पन्नपल्यस्य पल्यवर्गशलाकार्धच्छेदराशिमात्रद्विकसंवर्गोत्पन्न सूच्यंगुलका असंख्यातवाँ भागमात्र प्रमाण आता है। सो द्विरूपवर्गधारामें पल्यराशिरूप स्थानसे ऊपर विरलनराशिरूप असंख्यातके जितने अर्धच्छेद हैं,उतने वर्गस्थान जाकर उत्पन्न सूच्यंगुलका असंख्यातवाँ भाग आता है। 'विरलनराशिसे जितने रूप हीन होते हैं , उनका परस्परमें गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न होती है,वह उत्पन्न राशिका भागहार है।' ___ इस नियमके अनुसार जो ऋणरूप राशि पहले अलग स्थापित की थी,उसका अपवर्तन करनेपर एकका असंख्यातवाँ भाग हुआ । इसको पल्यसे गुणा करनेपर पल्यका असंख्यातवाँ भाग हुआ। यतः असंख्यात गुणा पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेद प्रमाण दो-दोके अंक २० रखकर उन्हें परस्परमें गुणा करनेसे भी इतना ही प्रमाण होता है। इसलिए सरलताके लिए यहाँ पल्यकी अर्द्धच्छेदराशिका भाग देकर एकका असंख्यातवाँ भाग पाया,उसे पल्यसे गुणा किया है। सो ऐसा करनेसे जो पल्यका असंख्यातवाँ भाग आया,उसका भाग सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागको देनेपर भी सूच्यंगुलका असंख्यातवाँ भाग ही रहा । वही तैजस शरीरकी स्थितिकी अन्योन्याभ्यस्तराशि है। कार्मणशरीरकी स्थितिकी नानागुणहानि शलाका पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेद प्रमाण है। इसका विरलन करके एक-एकके ऊपर दो-दो रखकर परस्परमें गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न होती है, वह पल्यकी वर्गशलाकासे भाजित पल्य प्रमाण है वही अन्योन्याभ्यस्त राशि है । क्योंकि यहाँ पल्यके अर्धच्छेद प्रमाण दुओंको रखकर परस्परमें गुणा करनेसे पल्य उत्पन्न होता है,वह तो भाज्य है और पूर्वोक्त नियमके अनुसार पल्य- ३० की वर्गशलाकाके अर्धच्छेदराशि प्रमाण दुओंको परस्परमें गुणा करनेसे पल्यकी वर्गशलाका होती है,वह भाजक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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