Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 457
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३९९ । द्वितीयगुणहानिद्रव्य १६०० मिदनद्धाणेणेत्यादियिदं मध्यमधनमिदि २०० मध्यमधनमं ३२० रूऊणद्धाणद्धेणेत्यादियिदं भागिसुत्तिरलु तच्चयमक्कु २०० मिदं भागिसि ३५२ ३८४ ८।३ ४१६ ४४८ बंद लब्ध १६ मी चयमं निषेकहारदिदं गुणिसुत्तिरलु १६ । १६ । द्वितीयगुणहानि ४८० प्रथमनिषेकमक्कं ५५६ । मेळेतन्नेकैकविशेषहीनकदिदं पोगि चरमनिषेकदोळु तन्न ५१२ रूपोनगच्छमात्र विशेषहीनमप्पुरिदं रूपाधिकगुणहानिगुणित तन्न चयप्रमाण ५ १६८ मक्कं १४४ । तृतीयगुणहानिद्रव्यम ८०० निदं गुणहानियदं भागिसि मध्यमधन १०० मिदं रूपोनगुणहान्यर्द्धहीनद्विगुणगुणहानियिद भागिसुत्तिरलु तच्चय १०० मदं दोगण २५ हानियदं गुणिसुत्तिरलु प्रथमनिषेकमकुं १२८ मेले मेले तन्नेकैकचयहीनक्रमदिदं पोगि चरम२८८ । द्वितीयगुणहानिद्रव्ये १६०० गुणहान्यायामेन खण्डिते मध्यमधनं २०० । इदं पुनः ३२० रूपोनगणहान्यायामार्धहीननिषेकहारेण भक्तं सद् द्वितीयगुणहानिप्रचयो भवति २०० स एव १० १६-८ mm ३५२ ३८४ ४१६ ४४८ ४८० ५१२ द्विगुणगुणहान्या गुणितो द्वितीयगुणहानिप्रथमनिषको भवति २५६ । उपरि निजकैकविशेषहोनक्रमेण गत्वा चरमनिषेके रूपोनगच्छमात्रस्वविशेषा हीना भवन्ति इति रूपाधिकगुणहानिगुणितनिजप्रचयप्रमाणो भवति १४४ । ततीयगणहानिद्रव्ये ८०० गणहान्या भक्ते मध्यमधनं १०० इदं रूपोनगुणहान्यर्धहीनद्विगुणगुणहान्या भक्तं प्रचयः १०० अयं दोगुणहान्या गुणितः प्रथम २५ २ निषेकः १२८ । अयमुपरि निजकैकचयहीनक्रमेण गच्छन् चरमनिषेके रूपोनगच्छमात्रचयहोनो भूत्वा रूपाधिक- १५ गुणहानिगुणितस्वविशेषप्रमाणो भवति ८ । ८ गुणितः ७२ । एवमनेन क्रमेण गत्वा चरमगुणहानिद्रव्ये १०० होता है। प्रथम गुणहानिकी निषेक रचना इस प्रकार जानना ५१२।४८०४४८४४१६।३८४। ३५२।३२०।२८८ इसी तरह द्वितीय गुणहानिके द्रव्य १६०० को गुणहानि आयामसे भाग देनेपर मध्यधन २०० होता है । इसको एक कम गुणहानि आयामसे हीन निषेकहारसे भाग देनेपर द्वितीय २० गणहानिका प्रचय होता है १६-५ = १२३ से २०० में भाग देनेपर चय १६ होता है। इस चयको दो गुणहानिसे गुणा करनेपर द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक १६४१६ = २५६ होता है। इससे ऊपर द्वितीयादि निषेक अपना एक-एक चय हीन कमसे जाकर अन्तिम निषेकमें एक कम गच्छ प्रमाण अपने चय हीन होते हैं । इस प्रकार एक अधिक गुणहानिसे गुणित अपने चय प्रमाण अन्तिमनिषेक होता है-१६४९% १४४। तीसरी गुणहानिके द्रव्य २५ ८०० में गणहानिका भाग देनेपर मध्यमधन १०० होता है। इसे एक कम गुणहानिसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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