Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 418
________________ ३६० गो० जीवकाण्डे दानुमोब्वँगे प्रयुक्तसंज्ञाकम्मं नामसत्यमक्कुं । ये तीगळोंदानुमोर्व्वं पुरुषं जिनदत्तन हंगे, इल्लि जिनैर्दत्तो जिनदत्तः ये दितु दानक्रियानिरपेक्षमागिये प्रयुक्तमितुं । चक्षुर्व्यवहार प्रचुरवदिदं रूपादिपुद्गलगुणंगळोळगे रूपप्रधान्यदिदं तदाश्रितवचनं रूपसत्यमक्कुं । ये ती गळोवं पुरुषं श्वेतनेंदि हेंगे इल्लि केशंगळ नीलादिवर्णांतरंगळगं रसादिगुणांत रंगनां सद्भावदोळ विवक्षित५ मागि श्वेतनेंदे वाक्प्रयोगं प्रतीत्य विवक्षितादितरदुद्दिश्य विवक्षितस्यैव स्वरूपकथनं प्रतीत्यसत्यं एं विवक्षित मत्तों दुनुद्दे शिसि विवक्षितक्कये स्वरूपकथनं प्रतीत्यसत्यं आपेक्षिकसत्यमेंदर्थं । तीगोंदानुमदु दीर्घ में दिए हैं गे मत्तों दर ह्रस्वत्वमनपेक्षिसि प्रकृतक्के दीर्घत्वमादुदुं एवं स्थूलसूक्ष्मादिवचनंगळं प्रतीत्य सत्यंगळे दु ज्ञातव्यं गळु । नैगमादिनयप्राधान्यमनाश्रयिसि प्रवृत्तप्प वचनं व्यवहारसत्यमक्कुमल्लि नैगमनयप्राधान्यदिदं येतीगळु रध्यते क्रूरः एंदितु पच्यते १० ओदन ये दितुं इति शब्द संग्रहनयादिव्यवहारप्रकारप्रदर्शनार्थमक्कुं । इंतु नयव्यवहाराश्रितमप्पावचनं स्यात् सर्वं सत् स्यात्सर्व्वमसत् इत्यादिवाक्यं व्यवहारसत्यमक्कुं । च शब्दं सर्व्वनयसमुच्चयात्थं पच्यते ओदनः ये दिल्लि पाकसमाप्त्यनंतर काल भावियप्पोदनपर्य्यायं । पाककालदोळे एतला मिल्लतादोडं तंडुलंगळोदनपर्य्यायप्रत्यासत्तिप्ररूपकनैगमनयविवक्षैयद मोदनपर्य्यायपरिणामि द्रव्यपेक्षयदं तद्वाक्यक्क सत्यत्वसिद्धियक्कुं । १५ दानक्रियानिरपेक्षमेव प्रयुक्तमिदम् । चक्षुर्व्यवहारप्रचुरत्वेन रूपादिपुद्गलगुणेषु रूपप्राधान्येन तदाश्रितं वचनं रूपसत्यं यथा कश्चित् पुरुषः श्वेत इति । अत्र केशादीनां नीलादिवर्णान्तररसादिगुणान्तरसद्भावेऽप्यविवक्षितत्वात् । प्रतीत्य विवक्षितादितरदुद्दिश्य विवक्षितस्यैव स्वरूपकथनं प्रतीत्यसत्यं आपेक्षिकसत्यमित्यर्थः । यथा कश्चिद्दीर्घ इति अन्यस्य ह्रस्वत्वमपेक्ष्य प्रकृतस्य दीर्घत्वकथनात् । एवं स्थूलसूक्ष्मादिवचनान्यपि प्रतीत्यसत्यानि ज्ञातव्यानि । नैगमादिनयप्राधान्यमाश्रित्य प्रवृत्तं वचनं व्यवहारसत्यम् । अत्र नैगमनयप्राधान्येन यथा रध्यते २० कूर पच्यते ओदन इति । इतिशब्दः संग्रहनयादिव्यवहारप्रकारदर्शनार्थः । नयव्यवहाराश्रितं यद्वचनं स्यात्सर्वं सत् स्यात् सर्वमसत् इत्यादिवाक्यं व्यवहारसत्यं भवति । चशब्दः सर्वनयसमुच्चयार्थः । पच्यते ओदन इत्यत्र पाकसमाप्त्यनन्तरकालभावी ओदनपर्यायः पाककाले यद्यपि नास्ति तथापि तण्डुलानामोदनपर्याय प्रत्यासत्तिप्ररूपकनैगमनयविवक्षया ओदनपर्यायपरिणामिद्रव्यापेक्षया तद्वाक्यस्य सत्यत्वसिद्धिः || २२३ || व्यापारकी अधिकता से रूपादिसे युक्त पुद्गल के गुणों में रूपकी प्रधानतासे तदाश्रित वचन रूप २५ सत्य है, जैसे अमुक पुरुष श्वेत है । यहाँ मनुष्य के केशोंके नील आदि वर्णके होनेपर तथा रस आदि अन्य गुणोंका सद्भाव होनेपर भी उनकी विवक्षा नहीं है । प्रतीत्य अर्थात् विवक्षित वस्तुसे अन्यकी अपेक्षा करके विवक्षित वस्तु के ही स्वरूपको कहना प्रतीत्य सत्य अर्थात् आपेक्षिक सत्य है; जैसे किसीको दीर्घ कहना । यहाँ दूसरेके छोटेपनकी अपेक्षा करके ही प्रकृतको दीर्घ कहा गया है । इसी तरह यह स्थूल है या यह सूक्ष्म है, इत्यादि वचन भी ३० प्रतीत्यसत्य जानना । नैगमादि नयकी प्रधानता लेकर कहा गया वचन व्यवहार सत्य है ! जैसे नैगमन की प्रधानतासे 'भात पकता है', ऐसा कहना; क्योंकि पकते तो चावल हैं, पकनेपर भात होगा । गाथामें आया इति शब्द संग्रहनय आदिके द्वारा होनेवाले व्यवहार के प्रकारको दर्शाता है | नयव्यवहारके आश्रयसे होनेवाला वचनव्यवहार, जैसे ' स्यात् 'सब वस्तु सत् है, स्यात् सब वस्तु असत् है, इत्यादि वाक्य व्यवहार सत्य है । 'च' शब्द सब नयोंके ३५ समुच्चय के लिए है । 'भात पकता है', यहाँ भातपर्याय पाककी समाप्ति के अनन्तर काल में होती है, अतः पाककालमें यद्यपि नहीं है; तथापि चावलोंकी भातरूप पर्यायकी निकटताके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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