Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 416
________________ ३५८ गो. जीवकाण्डे सत्यार्थवाचकं वचः सत्यवचनं जनपदादिदशविधसत्यार्थविषयवाग्व्यापारजननसमर्थमप्पस्वरनामकर्मोदयापादितभाषापर्याप्तिजनितभाषावर्गणावलंबनात्मप्रदेशशक्तिरूपमप्पावुदोंदु भाववचनदिंद जनितमप्प योगं प्रयत्नविशेषं सः अदु सत्यवचोयोगः सत्यवचनयोगमक्कुं। तद्विपरीतो मृषा असत्यार्थविषयवाग्व्यापारप्रयत्नमसत्यवचोयोगोऽसत्यवाग्योगमक्कुं। कमंडलुविनोळु घटमिदें५ दित्यादिसत्यमृषार्थवाग्व्यापारप्रयत्नमदु उभयवाग्योगमे दितु जानीहि नीनरि भव्यने । जो णेव सच्चमोसो सो जाण असच्चमोसवचिजोगो। अमणाणं जा भासा सण्णीणामंतणीयादि ॥२२१॥ यो नैव सत्यमृषा सजानीह्यसत्यमृषावचनयोगः । अमनसां या भाषा संज्ञिनामामंत्रण्यादिः॥ यः आवुदोंदु सत्यमृषार्त्यविषयो नैव भवति सत्यासत्यार्त्यविषयमल्तु । सः अदु असत्य१० मृषार्त्यविषयवारव्यापारप्रयत्नविशेषमनुभयवचोयोगमेंदितु जानीहि नीनरि । अदावुर्दे दोडे अमनसां द्वींद्रियाद्यसंज्ञिपंचेंद्रियपयंतमाद जीवंगळावुदोंदु अनक्षरात्मिकेयप्प भाषेयं संज्ञिनां संजिजीवंगळा मंत्रण्याद्यक्षरात्मिकयप्प भाषयुमेल्लमुमनुभयवचोयोग दितु पेळल्पटुदु । __अनंतरं जनपदादिदशविधसत्यमनुदाहरणपूर्वकमागि गाथात्रयदि पेळ्दपरु । सत्यार्थवाचकं वचनं सत्यवचनं जनपदादिदशविधसत्यार्थविषयाव्यापारजननसमर्थः, स्वरनामकर्मो१५ दयापादितभाषापर्याप्तिजनितभाषावर्गणावलम्बनात्मप्रदेशशक्तिरूपो यो भाववचनजनितो योगः प्रयत्नविशेषः स सत्यवचोयोगो भवति । तद्विपरीतो मृषा असत्यार्थविषयवाग्व्यापारप्रयत्नः असत्यवचोयोगः असत्यवाग्योगो भवति । कमण्डलुनि घट इत्यादिसत्यमृषार्थवाग्व्यापारप्रयत्नतः स उभयवाग्योग इति भव्य ! त्वं जानीहि।।२२०॥ यः सत्यमषार्थविषयो नैव भवति स असत्यमृषार्थविषयवाग्व्यापारप्रयत्नविशेषः अनुभयवचोयोग इति हे भव्य ! त्वं जानीहि । स कः ? उत्तरार्धेन तमेवोदाहरति-अमनसां द्वीन्द्रियाद्यसंज्ञिपञ्चेन्द्रियपर्यन्तजीवानां या अनक्षरात्मिका भाषाः संज्ञिनां च आमन्त्रण्याद्यक्षरात्मिकाभाषास्ताः सर्वाः अनुभयवचोयोग इत्युच्यते॥२२१।। २० अथ जनपदादिदशविधसत्यमुदाहरणपूर्वकं गाथात्रयेणाह सत्य अर्थका वाचक वचन सत्यवचन है। वह जनपद आदि दस प्रकारके सत्य अर्थको विषय करनेवाले वचन व्यापारको उत्पन्न करने में समर्थ है। स्वर नाम कर्मके उदयसे प्राप्त भाषापर्याप्तिसे उत्पन्न भाषावर्गणाके आलम्बनसे आत्मप्रदेशोंमें शक्तिरूप जो भाववचनसे उत्पन्न योग अर्थात् प्रयत्नविशेष है, वह सत्यवचनयोग है। उससे विपरीत असत्य है अर्थात असत्य अर्थको विषय करनेवाला वचन व्यापाररूप प्रयत्न असत्यवचन योग है । कमण्डलुमें घटव्यवहारकी तरह सत्य और असत्य अर्थविषयक वचन व्यापाररूप प्रयत्न उभय व योग है । हे भव्य, तुम जानो ॥२२०।। जो सत्य और असत्य अर्थको विषय नहीं करता,वह असत्यमृषा अर्थको विषय करनेवाला वचन व्यापाररूप प्रयत्न विशेष अनुभय वचन योग है,ऐसा हे भव्य तुम जानो। ३. वह कौन है!यह उत्तराधसे उदाहरण देकर कहते हैं - अमनस अर्थात् दोइन्द्रियसे लेकर असंज्ञी। पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवोंकी जो अनक्षरात्मक भाषा है तथा संज्ञीपंचेन्द्रियोंकी जो आमन्त्रण आदि रूप अक्षरात्मक भाषा है, वह सब अनुभयवचन योग कही जाती है ।। २२१॥ आगे जनपद आदि दस प्रकारके सत्य उदाहरण पूर्वक तीन गाथाओंसे कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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