Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
३८५ स्निग्धरूक्षत्वगुणेन स्कंधतां प्रतिपद्यते इति विस्रसोपचयाः एंबी निरुक्तिलक्षणसिद्धत्वदिदं बेरवक्के लक्षणं फेल्पडदु। तद्विस्रसोपचयपरमाणुगळ् कर्मनोकर्मपरिणतिरहितंगळु तद्योग्यंगळ रियल्पडुवुविदु विशेषं । ओंदु कम्मनोकर्मपरमाणुविनोळ एत्तलानुमिनितु विस्रसोपचयंगळागुत्तिरलु मागळु किचिदूनद्वयर्द्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमात्रकर्मनोकर्मसत्वपरमाणुगळ्गेनितु विस्रसोपचयंगळक्कुमें दितु त्रैराशिकविधानदिदं प्रमाणं फलं इच्छां इच्छां फलेन संगुण्य प्रमाणेन तु भाजयेत् । ५ प्र १ । फ १६ ख । इ । स १३ । एंदु बंद लब्धमात्मप्रदेशस्थितसर्ववित्रसोपचय परमाणुगळिनितप्पुवु -। स । १२ । १६ ख । मिवरोळ् किंचिदूनद्वयर्द्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धप्रमाण कमनोकमसत्वदोलु प्रक्षेपिसुत्तिरलु विस्रसोपचयसहितकर्मनोकर्मसत्वमितुटक्कुं स ० १ २ - १६ ख । अनंतरं कर्मनोकर्मोत्कृष्टसंचयस्वरूपमप्प स्थानलक्षणमं पेळ्दपं
उक्कस्सट्ठिदिचरिमे सगसगउक्कस्ससंचयो होदि।।
पणदेहाणं वरजोगादिसगसामग्गिसहियाणं ॥२५॥ उत्कृष्टस्थितिचरमे स्वकस्वकोत्कृष्टसंचयो भवति । पंचदेहानां वरयोगादिस्वसामग्रीसहितानां ॥
परिणतिरहितपरमाणव इति भावः। यद्यकस्मिन् कर्मनोकर्मपरिमाणौ एतावान् विस्रसोपचयः तदा किञ्चिदूनद्वयर्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमात्रकर्मनोकर्मसत्त्वपरमाणनां कियान् विस्रसोपचयः ? इति पैराशिकं कृत्वा प्र१। फ १६ ख । इ स ११२-इच्छां फलेन संगण्य प्रमाणेन भक्त्वा ये लब्धा आत्मप्रदेशस्थितसर्व- १५ विस्रसोपचयपरमाणवः ते एतावन्तः स १ १२-१६ ख । एतेषु पुनः किञ्चिदूनद्व चर्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धप्रमाणकर्मनोकर्मसत्त्वे प्रक्षिप्ते सति विस्रसोपचयसहितकर्मनोकर्मसत्त्वमेतावद्भवति । स । १२-1
१६ ख ॥२४९।। अथ कर्मनोकर्मोत्कृष्टसंचयस्वरूपस्थानलक्षणं प्ररूपयति
'विस्रसा' अर्थात् स्वभावसे ही आत्माके परिणामसे निरपेक्ष रूपसे जो 'उपचीयन्ते' अर्थात् उन-उन कर्म-नोकर्म परमाणुओंके स्निग्ध-रुक्ष गुणके कारण स्कन्धरूप होते हैं, वे २० विस्रसोपचय हैं। अर्थात् कर्म और नोकर्मरूप परिणमनसे रहित परमाणु विस्रसोपचय कहे जाते हैं।
विशेषार्थ-विस्रसोपचयरूप परमाणु कर्म-नोकर्मरूप होनेके योग्य तो होते हैं, किन्तु वर्तमानमें कर्म-नोकर्मरूप नहीं परिणमे हैं, उनको विस्रसोपचय कहते हैं। वे जीवके प्रदेशोंके साथ ही एक क्षेत्रावगाही होते हैं। किन्तु उनका जीवके परिणामोंसे कोई सम्बन्ध २५ नहीं होता।
__ यदि एक-एक कर्म परमाणुमें इतने विस्रसोपचय होते हैं,तो सत्तामें स्थित डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध मात्र नोकम-कर्म परमाणुओंके कितने विस्रसोपचय होते हैं ? ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाण राशि एक, फलराशि जीवराशिसे अनन्तगुणा, इच्छाराशि डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध । सो इच्छाराशिसे फलराशिको गुणा करके प्रमाणका भाग देनेसे ३० जो लब्ध आया, वह है-आत्माके प्रदेशोंमें स्थित समस्त विस्रसोपचयरूप परमाणु । इनमें कुछ कम डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण कर्म-नोकर्म परमाणुओंको मिलानेपर विस्रसोपचय सहित कर्म-नोकर्मका सत्त्व होता है ।।२४९।।
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