Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सक्को जंबूदीवं पल्लट्टदि पावबज्जवयणं च ।
पल्लोवमं च कमसो जणवदसच्चादिदिटुंता ।।२२४॥ शको जंबूद्वीपं परावर्तयति पापवर्जवचनं च । पल्योपमं च क्रमशो जनपदसत्यादिदृष्टांताः॥
संभावयिंदमसंभवपरिहारपूर्वकवस्तुधर्म विधिलक्षदिंदमावुदोंदु प्रवृत्तमप्प वचनमदु संभावनासत्यं येतोगळु शक्रनु जंबूद्वीपमं परावत्तिसुगुं परिवत्तिसलापनेबुदत्यं । जंबूद्वीपपरिवर्तन शक्त्यसंभवपरिहारदिदं तच्छक्तिविधानवचनं तक्रियानिरपेक्षं । सत्यम दितु बीजदोळंकुरजननादि. शक्तिवचनदंते असंभवपरिहारदिदं वस्तुधर्मविधिरूपमप्प संभावनगे नियमदिद तक्रियापेक्ष घटिसुवुदिल्लेकेदोडे क्रियगे बाह्यकारणकलापव्यापारप्रभवत्वमप्पुदे कारणमागि। अतींद्रियात्थंगळोळ प्रवचनोक्तविधिनिषेधसंकल्पपरिणामं भावमक्कं तदाश्रितमप्पवचनं भावसत्यमेंतीगळू शुष्कपक्वध्वस्ताम्ललवणसंमिश्रदग्धादिद्रव्यंगळु प्रासुकमदु कारणदि तत्सेवनदोळ पापवंधमिल्लें.१० दितु पापवर्त्यवचनदंतिल्लि । सूक्ष्मप्राणिगिद्रियागोचरत्वदोळं प्रवचनप्रामादिदं प्रासुकाप्रासुकसंकल्परूपमप्प भावाश्रितमप्प वचनक्क सत्यत्वमुंटप्पुरिदं । समस्तातींद्रियार्थज्ञानिप्रणीतप्रवचनक्के सत्यत्वमुंटप्पुवे कारणमागि च शब्दमेवंविधाऽनुक्तभावसत्यसमुच्चयार्थ प्रसिद्धार्थसादृश्य
__ संभावनया असंभवपरिहारपूर्वकवस्तुधर्मविधिलक्षणया यत्प्रवृत्तं वचनं तत्संभावनासत्यं यथा शक्रो जम्बूद्वीपं परावर्तयेत् परिवर्तयितुं शक्नोतीत्यर्थः । जम्बूद्वीपपरिवर्तनशक्त्यसंभवपरिहारेण तच्छक्तिविधानवचनं १५ तक्रियानिरपेक्षं सत्यमिति बीजे अङ्कुरजननादिशक्तिवचनवत् । असंभवपरिहारेण वस्तुधर्मविधिरूपसंभावनाया नियमेन तत्क्रियापेक्षा न घटते क्रियाया बाह्यकारणकलापव्यापारप्रभवत्वात् । अतीन्द्रियार्थेषु प्रवचनोक्तविधिनिषेधसंकल्पपरिणामो भावः । तदाश्रितं वचनं भावसत्यम् । यथा शुष्कपक्वध्वस्ताम्ललवणसंमिश्रदग्धादिद्रव्यं प्रासुकं ततस्तत्सेवने पापबन्धो नास्तीति पापवर्जनवचनम् । अत्र सूक्ष्मप्राणिनामिन्द्रियागोचरत्वेऽपि प्रवचनप्रामाण्येन प्रासुकाप्रासुकसंकल्परूपभावाश्रितवचनस्य सत्यत्वात् । समस्तातीन्द्रियार्थज्ञानिप्रणीतप्रवचनस्य २०
प्ररूपक नैगमनयकी विवक्षासे भात पर्यायरूप परिणमन करनेवाले द्रव्यकी अपेक्षा 'भात पकता है', इस वचनकी सत्यता सिद्ध है ।।२२३॥
___ असम्भवके परिहारपूर्वक वस्तुके धर्मका विधान करनेवाली सम्भावनाके द्वारा जो वचनव्यवहार होता है, वह सम्भावनासत्य है। जैसे इन्द्र जम्बद्वीपको पलटने में समर्थ यहाँ जम्बूद्वीपको पलटनेकी शक्तिकी असम्भवताका परिहार करते हुए उस शक्तिके विधान- २५ का वचन पलटनेकी क्रियासे निरपेक्ष होते हुए सत्य है। जैसे यह कहना कि बीजमें अंकुरको उत्पन्न करनेकी शक्ति है । इन्द्रमें जम्बूद्वीपको पलटनेकी शक्ति असम्भव है । इस असम्भवताका परिहार करके इन्द्रमें पलटन रूप धर्मके अस्तित्वकी सम्भावना नियमसे उस क्रियाको अपेक्षा नहीं रखती। अर्थात् इन्द्र जम्बूद्वीपको पलट दे, तभी इन्द्र जम्बूद्वीपको पलट सकता है,यह कहा जा सकता है, ऐसी बात नहीं है। क्रिया तो बाह्य कारण समूहके व्यापारसे ३० उत्पन्न होती है। अतीन्द्रिय पदार्थों में प्रवचनमें कहे गये विधि निषेधके संकल्परूप परिणामको भाव कहते हैं। उसके आश्रित वचन भाव सत्य है, जैसे सूखा हुआ, पकाया हुआ, छिन्न-भिन्न किया हुआ, खटाई या नमक मिलाया हुआ तथा जला हुआ द्रव्य प्रासुक है। अतः उसके सेवनमें पापबन्ध नहीं है । इस प्रकारके पापके त्यागरूप वचन भावसत्य है। यहाँ सूक्ष्म प्राणियोंके इन्द्रियोंके अगोचर होनेपर भी आगमकी प्रामाणिकतासे प्रासुक और , अप्रासुकका संकल्परूप भावके आश्रयसे वचन सत्य है, क्योंकि आगममें ऐसा कहा है। और
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