Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो. जीवकाण्डे , अंकक्रमदिदं पदिने टुं स्थानंगळोलु शून्यंगळप्पुवुमेरडुमो भत्तु मोदुमेरडुमो दुमय्,मोभत्तुं नाल्कुमळु मेळु मेळुमोदु मूरुं शून्यमुमरडुमेंटुं शून्यमुं मूरु शून्यमू मूरु मारु मेरडुमय्दुं नाल्कु मूरुमोंदु नाकुमक्कुं। ४१३ । ४५२६३०३०८२०३१७ । ७७४९५१२ । १९२००००००००००००००००००।
नानूर पदिमूरं षड्वारकोटिगर्छ नाल्वत्तय्दु लक्षेयुमिप्पत्तारु सासिरद मूनूर मूरु पंचवार कोटिगळु ५ मटु लक्षेयु मिप्पत्तुसासिरद मूनूर पदिनेल चतुर्वारकोटिगळु मेप्पत्ते लक्षेयं नाल्वत्तोंभत्तु सासिरदैनूर हन्नेरडु त्रिवारकोटिगर्छ हत्तो भत्तुलक्षयुमिप्पतु सासिरद्विकवारकोटिगठप्पुबुदत्थं ।
एक्केक्कं रोमग्गं वस्ससदे पेलिदम्मि सो पल्लो।
रित्तो होदि स कालो उद्धारणिमित्तववहारो।-[ति. प. १।१२५ ]
इन्ती गर्तस्थित रोमागंगळोलो दोदु रोमाग्रमं वर्षशतदोलु स्पेटिसला पल्यमदु होग १० रिक्तमक्कुमा कालमुद्धारपल्यनिमित्तमप्प व्यवहार पल्यकालमक्कुं। संदृष्टि २-७॥ ७॥
ववहाररोमरासि पत्तेक्कमसंखकोडिवरिसाणं।
समयसमं छेत्तूणं बिदिए पल्लम्मि भरिदमि ॥-[ति. प. १।१२६ ] व्यवहारपल्यस्थित रोमराशियोळेकैकरोममं प्रत्येकसंख्यातकोटिवषंगळसमयंगळोळ समानमागि कत्तरिसि द्वितीयपल्यमं तुंबुवुदंतु तुंबुतिरलु।
समयं पडि एक्केवलं वालग्गं पेलिदम्मि सो पल्लो।
रित्तो होदि स कालो उद्धारं णाम पल्लं तु॥-[ ति. प. १।१२७ ] आ तुंबिद वालाग्रंगळोळोंदोंदं समयं प्रति स्फेटिसुत्तिरला पल्यमें दिंगे रिक्तमक्कुमा
गुणकारेषु राश्यर्धखण्डविधानेन लघुकरणेन गुणितेषु यल्लब्धं तदिदमङ्कक्रमेण अष्टादशशून्यद्विनवैकद्वचेकपञ्चनवचतुःसप्तसप्तसप्तकत्रिशून्यद्वयष्टशून्य त्रिशून्यत्रिषद्विपञ्चचतुस्त्र्येकचतुर्मात्रं व्यवहारपल्यसंख्या भवति२० ४१३, ४५२६३०३, ०८२०३१७, ७७४९५१२, १९२००००, ००००००००००००००। चतुःशतत्रयोद
शषट्वारकोटिपञ्चचत्वारिंशल्लक्षषड्विंशतिसहस्रत्रिशतत्रिपञ्चवारकोट्यष्ट लक्षविंशतिसहस्रत्रिशतसप्तदशचतुर्वार - कोटिसप्तसप्ततिलक्षकानपश्चाशत्सहस्रपञ्चशतद्वादशत्रिवारकोट्येकानविंशतिलक्षविंशतिसहस्रद्विवारकोटिमात्र - मित्यर्थः । एकैकस्मिस्तद्रोमाग्रे वर्षशते वर्षशतेऽपनीते यावान कालः स सर्वो व्यवहारपल्यस्य कालो भवति । संदृष्टिः २११ । पुनरेकैकस्मिस्तद्रोमाग्रे असंख्यातकोटिवर्षसमयैः समं प्रत्येकं खण्डिते 'द्वितीयपल्यस्य रोमाग्र
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२५ ४१३,४५२६३०३,०८२०३१७, ७७४९५१२, १९२०००००००००००००००००० । अर्थात्
चार सौ तेरह कोड़ाकोड़ी कोडाकोड़ी कोड़ाकोड़ी, पैंतालीस लाख छब्बीस हजार तीन सौ तीन कोड़ाकोड़ी कोड़ाकोड़ी कोड़ी, आठ लाख बीस हजार तीन सौ सतरह कोड़ाकोड़ी कोड़ाकोड़ी, सतहत्तर लाख उनचास हजार पाँच सौ बारह कोड़ाकोड़ी कोड़ी, उन्नीस लाख बीस हजार
कोड़ाकोड़ी प्रमाण होते हैं। इन रोमानों में से एक-एक रोम सौ-सौ वर्ष के बाद निकालनेपर ३० जितना काल होता है,वह सब व्यवहारपल्यका काल है। पुनः इन एक-एक रोमानका
असंख्यात करोड़ वर्षोंके जितने समय होते हैं, उतने-उतने खण्ड करनेपर दूसरे उद्धार पल्यके रोमानोंकी संख्या होती है। इतने ही इसके समय होते हैं। उनकी संख्या लाते हैं-विरलन राशिको देयराशिके अर्धच्छेदोंसे गुणा करनेपर जो लब्ध आता है, वह उत्पन्न राशिके अर्धच्छेदोंका प्रमाण होता है । अतः अद्धापल्यकी अर्धच्छेदराशिमें अद्धापल्यकी अर्धच्छेद १. ब उद्धार ।
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