Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
३००
गो. जोवकाण्डे माडल्पडुगुं । अरुवत्तु मुहूर्तक्कल्लमिनितु गम्यक्षेत्रमागलो भत्तु मुहूर्त्तक्कैनितु गम्यक्षेत्रमक्कुम दितु प्र । मू ६० । फ। ३१५०८९ । इ । मु।९। लब्धक्षेत्रं चक्षुरिंद्रियविषयसर्वोत्कृष्टक्षेत्रमक्कुं। ४७२६३ ३७ अनंतमिद्रियंगळ्गे संस्थाननिर्देशमं माडिदपं ।
चक्खू सोदं घाणं जिन्भायारं मसूरजवणाली ।
अदिमुत्तखुरप्पसमं फासं तु अणेयसंठाणं ॥१७१॥ चक्षुःश्रोत्रं घ्राणं जिह्वाकारः यथासंख्यं मसूरियवनाल्यतिमुक्तक्षुरप्रसमं भवत्याकारः स्पर्शनं त्वनेकसंस्थानम् ॥
चक्षुःश्रोत्रघ्राणजिह्वाकारंगळ यथासंख्यमागि मसूरिकायवनाळियतिमुक्तक क्षुरप्रसमानंगलप्पुवु ८॥
___ स्पर्शनमनेक संस्थानमक्कुमेक' दोर्ड पृथिव्यादिगळगं द्वींद्रियादिगळ्गं शरीराकारमनेक१. विधमप्पुरिदं स्पर्शनेंद्रियक्क सांगव्यापित्वदिदं शरीराकारानुकारित्वमुंटप्पुदु कारणमागि ।
म्यक्षेत्र फ ३१५०८९ तदा नवमहर्तानां इ ९ कियदिति राशिकं कृत्वा नबभिर्गुणयित्वा षष्ठ्याहते सति यल्लब्धं तच्चक्षुरिन्द्रियविषयसर्वोत्कृष्टक्षेत्रं भवति ४७२६३१ ॥१७०॥ अथेन्द्रियाणां संस्थानं निर्दिशति
चक्षुःश्रोत्रघ्राणजिह्वाकारा यथासंख्यं मसूरिकायवनाल्यतिमुक्तकक्षुरप्रसमाना भवन्ति । स्पर्शनमनेकसंस्थानं भवति । पृथिव्यादीनां द्वीन्द्रियादीनां च शरीराकारस्यानेकविधत्वात् सर्वव्यापिनः स्पर्शनेन्द्रियस्यापि
१५ होता है । इसका वर्ग करके फिर उसे दससे गुणा करनेपर ९९२८१२९६००० होता है। इसका
वर्गमूल प्रहण करनेपर अभ्यन्तर परिधिका प्रमाण ३१५०८९ होता है । इस परिधिको एक सूर्य साठ मुहूर्त में समाप्त करता है। और सूर्यको निषधाचलसे अयोध्या तकका मार्ग तय करने में नौ मुहूर्त लगते हैं। यदि सूर्य साठ मुहूर्त में ३१५०८९ योजन चलता है, तो नौ
मुहूर्त में कितना चलता है। ऐसा त्रैराशिक करनेपर ३१५०८९ को नौसे गुणा करके साठसे २० भाग देनेपर जो लब्ध आता है ४७२६३३०,वही चक्षु इन्द्रियके विषयका सबसे उत्कृष्ट क्षेत्र होता है।
विशेषार्थ-जब श्रावण मासमें सूर्य अभ्यन्तरवीथीमें होता है, तो निषधगिरिके ऊपर उदय होते सूर्यको अयोध्याके मध्यमें महलके ऊपर स्थित भगवान् ऋषभदेव, भरत
चक्रवर्ती आदि विशिष्ट क्षयोपशमवाले विशिष्ट पुरुष देखते हैं। अतः अयोध्यासे निपधा२५ चलकी जितनी दूरी है उतना ही चक्षुका उत्कृष्ट विषयक्षेत्र है। सूर्यको उस समय अयोध्या
तक आने में नौ मुहूर्त लगते हैं,क्योंकि अयोध्या मध्यमें है और उस समय दिन अठारह मुहूर्तका होता है। तथा एक सूर्य दो दिनमें परिधिको समाप्त करता है-इस तरह प्रमाणराशि साठ मुहूते और इच्छाराशि नौ मुहूर्त सिद्ध होती है ॥१७०।।
आगे इन्द्रियोंका आकार कहते हैं
चक्षु इन्द्रियका आकार मसूरके समान है। श्रोत्र इन्द्रियका आकार जौकी नालीके समान है। घ्राण इन्द्रियका आकार तिलके फूलके समान है । और जिह्वाका आकार खुरपाके समान है। स्पर्शन इन्द्रियके अनेक आकार हैं , क्योंकि पृथिवी आदि और दोइन्द्रिय आदिके शरीरके आकार अनेक प्रकारके होनेसे सर्वशरीरव्यापी स्पर्शन इन्द्रियके भी अनेक आकार होते हैं ॥१७१६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |