Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
२३७
कालमुद्धारपल्यमें ब नामक्कुमिदक्के संदृष्टि । वि ३ छे छे ई संदृष्टिग निर्णयमं माळ्प।
२५ को २ "तियहीण सेढि छेदणमेत्तो रज्जुच्छेदे हवेइ" एंदु त्रिरूपोनजगच्छेणिय अर्द्धच्छेदंगळु रज्जुच्छेदंगळप्पुवा (ज) गच्छेणियर्द्धच्छेदंगळे नित दोडे :
विरलिज्जमाणरासि दिण्णस्सद्धच्छिदीहि संगुणिदे। ___ अद्धच्छेदा होंति हु सव्वत्थुप्पण्णरासिस्स ॥-[ ति. सा. १०७ }
एंदितु जगच्छ्रेणिय विरलनराशियं देयमप्प घनांगुलदर्धच्छेदंगाळदं गुणियिसिदोर्ड जगच्छ्रेणिय अर्धच्छेदंगळप्पुवा त्रिरूपोनजगच्छेणिय अर्द्धच्छेदप्रमितंगळोल रज्जुच्छेदंगळोळ वि ३ छे छे ३ ओंदु लक्षयोजनदर्द्धच्छेदंगळं एळ लक्षेयुमरुवत्तें टुसासिरमंगुच्छेदंगळुमधिकमादसूच्यंगुलार्द्धच्छेदंगळंकळियलु समस्तद्वीपसागरंगळ प्रमाणमक्कुमल्लियपनयन त्रैराशिकमं माडि कळेवुदे ते दोडे छे छे ३ इनितु गुणकारमं तोरि विरलनराशियोळोंदु रूपं कळेयल्पडुत्तिरलिनितु- १० रूपुगुळ्गे नितुरूपुगळकळयल्बप्पु दु प्रमाणफलइच्छाराशिगळं माडि प्र छे छे ३ फ १। इ । छे ७। छे। बंद लब्धं साधिकत्रिभागमना विरलनराशियप्प गुण्यराशियोळकळेदोडदु समस्तद्वीपसागर
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संख्या भवति, तत्समयसंख्यापि तावती संदृष्टिः वि। छे छे ३ । इयमानीयते-विरलनराशी देयराश्यर्धच्छेद
। २५ को २ १/
३
मावैगणिते लब्धस्योत्सन्नराश्यर्धच्छेदप्रमाणत्वात अद्धापल्यस्य अर्धच्छेदराशी तेनैव राशिना गुणिते सूच्यगुलार्धच्छेदः छे छे । अयं च त्रिगुणितो घनाङ्गलस्याधुच्छेदः छे छे ३ । अनेन अद्धापल्यार्धच्छेदराश्यसंख्या- १५
तैकभागे गुणिते जगच्छणेरर्धच्छेदः वि छे छे ३ । अयं च त्रिरूपोनो रज्जुच्छेदः वि छे छे ३ । अस्मात् मेरुमस्तकपतितैकार्धच्छेदेन सह लक्षयोजनानां सप्तलक्षाष्टाषष्टिसहस्राङ्गलानां च संख्यातैरर्धच्छेदैः अधिकसूच्यगुलार्धच्छेदेषु अपनीतेषु शेषं समस्तद्वीपसागरसंख्या भवति । तदपनयनं तु यदि प्र छे छे ३ एतावन्मात्राराशिसे गुणा करनेपर सूच्यंगुलकी अर्धच्छेदराशि होती है । इसको तिगुना करनेपर घनांगुलकी अर्धच्छेदराशि होती है। इससे अद्धापल्यकी अर्धच्छेद राशिके असंख्यातवे भागको गुणा २० करनेपर जगतश्रेणीके अर्धच्छेद होते हैं । इसमें तीन कम करनेपर राजूके अर्धच्छेद होते हैं। इनमें-से मेरुकी चोटीपर पड़नेवाले एक अर्धच्छेदके साथ एक लाख योजन तथा एक योजनके सात लाख अड़सठ हजार अंगुलोंके संख्यात अर्धच्छेदसे अधिक सूच्यंगुलके अर्धच्छेदोंको घटानेपर जो शेष रहे,उतनी ही समस्त द्वीपसमुद्रोंकी संख्या है। घटानेकी प्रक्रिया इस प्रकार है- यदि तिगुने सूच्यंगुलके अर्धच्छेद प्रमाण गुणाकारघटानेके लिए अद्धापल्यके अधच्छेदोंके २५ असंख्यातवें प्रमाण गुण्यमें एक घटाया जाता है, तो यहाँ संख्यात अधिक सूच्यंगुलके अर्धच्छेद घटानेके लिए कितना घटाना चाहिए ऐसा त्रैराशिक करनेपर कुछ अधिक त्रिभाग गुण्यमें-से घटाना चाहिए। इस प्रकार कुछ अधिक एकके तीसरे भागसे हीन पल्यके १. मतियोलु। २. इंतु ।
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