Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
दुगुणपरित्तासंखेणवहरिदद्धारपल्लवग्गसला।
बिदंगुळ वग्गसलासहिया सेढिस्स वग्गसला ॥ -[त्रि. सा. १०९] एंदु द्विगुणपरीतासंख्यातजघन्यराशियिदं भागिसल्पदृद्धापल्यवर्गशलाकगळु व बिदंगुळ
१६। २ वग्गसळासहिया। वृंदांगुलवर्गशलाकेगळं कूडि श्रेणिगे वर्गशलाकंगळप्पुवु। व २ अथवा
१६२ ५ देयराशेरुपरिविरलनराश्यद्धच्छेदमात्राणि वर्गास्थानानि गत्वा विवक्षितराशिरुत्पद्यते एंदु देय
राशियप्प घनांगुलद मेले विरलनराशियद्धच्छंदमात्रवर्गस्थानंगळं नडेदु व जगच्छ्रेणि पुट्टिदुदिदनू घनांगुलवर्गशलाकगळनु कूडुत्तिरलु तद्राशिप्रमाणमेयप्पु वे बुमिल्लि द्विगुण व .. परीतासंख्यातजघयदिदं भागिसल्पट्टद्धापल्यवर्गशलाकाराशिय लब्धमं विरलिसि रूपं प्रति
१६। २
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शलाकास्तु द्विगुणपरीतासंख्यातजघन्यभक्ताद्धापल्यवर्गशलाकायतवन्दाङगल वर्गशलाकामाव्य:
व
अथवा
व । २ जगच्छ्रणेदेय राशिधनाङ्गलस्योपरि विरलनराश्यर्धच्छेदमात्र वर्गस्थानानि गत्वा उत्पन्नत्वादप्युक्तमात्र्यो भवन्ति । स च विरलनराशिः कियानिति चेत् उच्यते-अद्धापल्यार्थच्छेदराशेर्वर्गमूलानि द्विगुणपरीतासंख्यातजघन्यस्यार्धच्छेदमात्राण्यधोऽवतीयं चरमवर्गमूलस्यार्धच्छेदाः द्विगुणजघन्यपरीतासंख्यातभक्तवर्गशलाकामात्राः 'तम्मित्तदुगे गुणे रासोति' तदर्धच्छेदस्य व भाज्यमात्रषु भागहारमात्रेषु च द्विकेषु पृथग्वगितेषु
१६ । २ प्रमाण हो, उतनी ही जगतश्रेणीकी वर्गशलाका है। अथवा जगतश्रेणीकी देयराशि घनांगुलके १५ ऊपर विरलन राशि पल्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भाग, उसके जितने अर्धच्छेद हैं,
उतने वर्गस्थान जाकर जगतश्रेणी उत्पन्न होती है। इससे भी जगतश्रेणीकी वर्गशलाका का पूर्वोक्त प्रमाण जानना। सो जगतश्रेणीकी विरलन राशि कितनी है, यह बतलाते हैंअद्धापल्यकी अर्धच्छेदराशिके वर्गमूल दूने जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेद प्रमाण करो।
सो द्विरूपवर्गधारामें पल्यके अर्धच्छेदरूप स्थानसे नीचे उतने स्थान जाकर अन्त में जो २० वर्गमूलरूप स्थान हो, उसके अधच्छेद, दूने जघन्य परीतासंख्यातका भाग पल्यकी
वर्गशलाकामें देनेपर जो प्रमाण होता है, उतने हैं। 'अर्धच्छेदोंका जितना प्रमाण हो उतने दो-दो रखकर परस्परमें गुणा करनेपर राशि उत्पन्न होती है।' इस नियमके अनुसार यहाँ पल्यकी वर्गशलाकाका प्रमाण भाज्य है सो उतने दो-दो रखकर परस्परमें
गुणा करनेपर पल्यकी अर्धच्छेद राशि होती है और दूना जघन्य परीतासंख्यात प्रमाण २५ भागहार है सो उतने दो-दो रखकर परस्परमें गुणा करनेपर यथासम्भव असंख्यात होता
है। इस तरह उस अन्तिम वर्गमूलका प्रमाण पल्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भाग जानना। वही यहाँ जगतश्रेणीकी विरलनराशि है। लोकप्रतर द्विरूपधनधारामें उपन्न होता है। अतः उसके अर्द्धच्छेद और वर्गशलाका अन्य धाराओं में उत्पन्न होते हैं। लोकप्रतरके अर्धच्छेद
जगतश्रेणीके अर्द्धच्छेदोंसे दूने होते हैं । तथा 'वर्गशलाका एक अधिक होती है'-इस नियमके ३० अनुसार जगतश्रेणीकी वर्गशलाकासे एक अधिक जगतप्रतरकी वर्गशलाका होती है । तथा
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