Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
२१३
प्रतिरूपमत्तु संगुणं माडि पूर्व्वतृतीयशलाकाराशियोल मत्तों दु रूपं कळे वुदे ता श । २ तृतीयशलाकाराशियं निष्टापिसि तत्रोत्पन्नराशियदुवं द्विकवारासंख्यातमध्यम विकल्पराशियक्कु मा महाराशियं स्थापिसि धर्मद्रव्यमधर्म्मद्रव्यमेकजीवप्रदेश लोकाकाशप्रदेशमी नालकुराराशिय प्रदेशंगळ्समानंगळ्समानंगळागुत्तं जगच्छ्रेणिघनप्रेमितंगळ प्रत्येकमप्युवी नाल्कु राशिगळं मद== एकजी = लोका=अप्रतिष्ठित प्रत्येकंगळ संख्यातलोकमात्रंगळुम =० प्रतिष्ठित प्रत्येकंगळ संख्यातलोकमात्रंगोगुत्तमप्रतिष्ठित प्रत्येकमं नोडलसंख्यात लोकमात्रगुणितंगळक्कु = ० = मी राशियुमितारु राशिगनु महाराशियो कूडि मत्तमा महाराशियं शलाकाविरलन देयमेंदु त्रिप्रतीकं माडिश विर | दे ॥ विरलनदेय क्रर्मादिदं शलाकात्रयनिष्ठापनं गेय्दु तत्रोत्पन्नमहाराशियदुखु द्विकवारअसंख्यात मध्यमविकल्पराशियक्कुमी महाराशियो त्सर्पणावसर्पणाकालद्वयमं कल्पमें बुदु । आ कल्पसमयसंख्येमं प ७॥ ( " ||" ) स्थितिबंधप्रत्ययंगळमं अनुभागबंधाध्यवसायंगळुमं = ० = ० योगोत्कृष्टाविभागप्रतिच्छेदंगलुम = = = a निन्ती नाल्कं राशिगळुमनल्लि कूडि मत्तमा महाराशियं शलाकाविरलनदेय में दु त्रिप्रतीकं माडि श । विदे मुन्निनंत विरलन देयक्रमदिदं शलाकात्रयनिष्ठापनं माडि तत्रोत्पन्नमहाराशिय संख्यातमं मीरि परीतानन्त जघन्य
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तं महाराशि शलाकाविरलनदेयं कृत्वा श । विदेa ! विरलनदेयक्रमेण प्राग्वत् शलाकात्रये निष्ठापिते तत्रोन्नराशी उत्सर्पिण्यवसर्पिणोद्वयात्मकसंख्यात पल्यमात्र कल्पसमय राशि: प असंख्यात लोकमात्रस्थितिबन्धप्रत्ययराशिः = a अतोऽसंख्यात लोक गुणोऽप्यसंख्यात लोकमात्रोऽनुभागबन्धा ( ध्य ) व्यवसायराशिः = a = a अतोऽसंख्यात लोकगुणोऽप्यसंख्यात लोकमात्रो योगोत्कृष्टाविभागप्रतिच्छेदराशिः = a = a = a एते चत्वारो राशयो मेलयितव्याः । तं महाराशि शलाकाविरलनदेयं कृत्वा श । विa | देa प्राग्वदेव
१.
a
विरलनदेयक्रमेण शलाकात्रये निष्ठापिते यल्लब्धं तद्रूपोनं तदोत्कृष्टद्विकवारासंख्यातं भवति २५६ सम्पूर्ण तदा जघन्यपरीतानन्तं भवति । तत्संदृष्टिः २५६ । अस्योपरि एका कोत्त रान्मध्यमपरीतानन्त विकल्पान्नीत्वा इदं जघन्यपरीतानन्तं विरलयित्वा रूपं प्रति इदमेव दत्त्वा परस्परं गुणिते यल्लब्धं तद्रूपोनं तदा उत्कृष्टपरीतानन्तं भवति । तत्संदृष्टि: - ज जु अ - १ सम्पूर्ण तदा जघन्ययुक्तानन्तं भवति तत्संदृष्टिः । ज जु अ । इदम
१. महितं । २. मलमा ।
स्थापित करो । पहले की ही तरह विरलन राशिका विरलन और देयराशिको उसपर स्थापित कर परस्पर में गुणा करना और शलाका राशिमें से एक कम करना, आदिकी विधिसे जब शलाका राशि तीसरी बार भी समाप्त हो जाये तब जो राशि उत्पन्न हो, उसमें ये चार राशियाँ मिलाना - उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालके संख्यात पल्य प्रमाण समयराशि, असंख्यात लोकमात्र स्थितिबन्धके कारणभूत परिणामोंके स्थान, इनसे असंख्यात लोक गुणे होनेपर भी असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धके कारणभूत परिणामोंके स्थान, तथा इनसे असंख्यात - लोकगुणी होनेपर भी असंख्यात लोक मात्र योगोंकी उत्कृष्ट अविभागी प्रतिच्छेद राशि । इनके मिलानेपर जो राशि उत्पन्न हो, उस राशि प्रमाण विरलन देय शलाका राशि स्थापित करके पूर्व रीतिसे तीन बार शलाका राशि स्थापित करनेपर जो राशि उत्पन्न हो, वह जघन्य परीतानन्त है | इसके ऊपर एक-एक बढ़ते-बढ़ते एक कम उत्कृष्ट परीतानन्त पर्यन्त मध्यम परीतानन्तके भेद जानना । एक कम जघन्य युक्तानन्त प्रमाण उत्कृष्ट परीतानन्त है । अब
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