Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
राशियक्कुमदक्के संदृष्टि २५६ ई राशियोकोंडु रूपं कळेदोर्ड द्विकवारासंख्यातोत्कृष्टराशियक्कु २५६।१ मा परीतानंतजघन्यराशियं विरलिसि रूपं प्रति तद्राशियं कोट्टु परस्परं गुणिसिदोडुत्पन्न - लब्धराशियुक्तानंत जधन्यप्रमाणमक कुवी राशिय भव्यजीवं गळ समानमक्कुमिदक्क संदृष्टि । ज । जु । आ । ई राशियोळोंदु रूपं कुंदिसिदोर्ड परीतानन्तदुत्कृष्टमक्कुं । परीतानंतजघन्यराशिय मेले५ काकोत्तर वृद्धिक्रमदिदं नडदु मध्यमविकल्पराशिगळागुत्तं बंदिदु परीतानंतोत्कृष्टराशियक्कु मेबुदत्थं ज जुअ = १ मा अभव्यजीवराशिसमानमप्प युक्तानन्तजघन्यराशियं वेगळोलुत्तिरलु जघन्यद्विकवाराऽनन्तराशियक्कुमिदक्के संदृष्टि । जजु । अ । व । ई द्विकवारानन्तजघन्यराशियो रूपं हीनं माडि दोडे युक्तानंत जघन्यराशिय मे लेकायेकोत्तरवृद्धिक्रमदिंद नडेदु युक्तानंतमध्यमविकल्पराशिगळागुत्तं बंदिदु सर्वोत्कृष्टयुक्तानंतराशियक्कु । ज ज अ व १ ॥ मा द्विकवारा१० नंतजघन्यराशियं जजु अ व त्रिप्रतिकं माडि विरलनदेयक्रमदिंद शलाकात्रयनिष्ठापनं माडि तत्रोत्पन्नराशियदु जघन्यद्विकवारानंतरशिय मेलेकाद्येकोत्तरवृद्धिक्रर्मादिदं पच्चिबंद द्विकवारानंत
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भव्यराशिसमं । अस्योपरि एकाद्येकोत्तरान् मध्यमयुक्तानन्तविकल्पान् नीत्वा अस्य वर्गं गृहीत्वा रूपमूनं तदा उत्कृष्टयुक्तानन्तं भवति संदृष्टिः ज जु अव - १ | सम्पूर्णं तदा जघन्यद्विकवारानन्तं भवति । संदृष्टि: ज जु अव । अस्योपरि एकाद्यकोत्तरान् रूपोन केवलज्ञानशक्त्य विभागप्रतिच्छेदराशिपर्यन्तान् मध्यमान् द्विकवारानन्त१५ विकल्पान् जानन् जघन्यद्विकवारानन्तं त्रिः प्रतिकं कृत्वा प्राग्वत् शलाकात्रये निष्ठापिते यल्लब्धं तत्र सिद्धराशिः
३ पृथिव्यादिचतुष्टयप्रत्येक वनस्पतित्र सराशिरहित संसारिराशिरेव निगोदराशिः १३ = | अतः प्रत्येकवनस्पत्यधिकवनस्पतिराशिः १३ = इतोऽनन्तानन्तगुणपुद्गलराशिः १६ ख । इतोऽनन्तानन्तगुणो व्यवहारकालसमयराशिः । १६ ख ख । इतोऽनन्तानन्तगुणो अलोकाकाशप्रदेशराशिः १६ ख ख ख । एते षट् राशयः प्रक्षेप्तव्याः । तं राशि प्राग्वत् त्रिःप्रतिकं कृत्वा क्रमेण शलाकात्रये निष्ठापिते यल्लब्धं तत्र धर्माधर्मद्रव्ययोः अगुरुलघुगुणा
२० जघन्य युक्तानन्तका प्रमाण कहते हैं- - जघन्य परीतानन्तको एक-एक के रूपमें विरलन करके प्रत्येक एकपर जघन्य परीतानन्तको स्थापित करके परस्पर में गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो, वह जघन्य युक्तानन्त है । इतनी ही अभव्य जीवोंकी राशि है । इसके ऊपर एक-एक बढ़ते एक कम उत्कृष्ट युक्तानन्त प्रमाण मध्य युक्तानन्तके भेद हैं । तथा एक कम जघन्य अनन्तानन्त प्रमाण उत्कृष्ट युक्तानन्त होता है ।
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अब जघन्य अनन्तानन्तको कहते हैं— जघन्य युक्तानन्तको जघन्य युक्तानन्तसे गुणा करने पर जघन्य अनन्तानन्त होता है । इसके ऊपर एक-एक बढ़ते-बढ़ते एक कम केवलज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेद प्रमाण मध्यम अनन्तानन्तके भेद होते हैं । जघन्यअनन्तानन्त प्रमाण विरलन देय शलाका राशिके क्रमसे पहले की तरह तीन बार शलाका राशि स्थापित करनेपर जो राशि उत्पन्न हो, उसमें ये छह राशियाँ मिलाना - सिद्ध राशि, पृथिवी आदि चार, प्रत्येक वनस्पति और त्रसराशिसे रहित संसारी जीवराशि मात्र निगोदराशि, प्रत्येक वनस्पति सहित निगोदराशि प्रमाण वनस्पतिराशि, जीवराशिसे अनन्तगुणी पुद्गलराशि | इससे भी अनन्तानन्तगुणी व्यवहार कालके समयोंकी राशि । इससे भी अनन्तानन्तगुणी अलोकाकाशके प्रदेशोंकी राशि । ये छह राशियाँ मिलाना । इन सबको मिलानेसे जो परिमाण हुआ, उतना ही विरलन देय शलाका राशिके क्रमसे पूर्ववत् तीनबार शलाका राशि समाप्त होनेपर जो राशि उत्पन्न हो, उसमें धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्यके अगुरुलघुगुणके
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१. जन्मकुं । २. म वग्गंगोलुत्तिरलु ।
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