Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१८७
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ज १५ । २ वड्ढिहिदे स्वसंजुदे ठाणा ज १५ २ एंदितु तंद लब्ध प्रमाणंगळप्पुवु। मत्तमा २१५ संख्यातभागवृद्धिय चरमावगाहनस्थानदोनोंदु रूपं पेच्चिसुत्तिरवक्तव्यभागवृद्धिय प्रथमावगाहनस्थानं पुटुंगु ज मल्लिदं मुंदै प्रदेशोत्तरवृद्धिक्रमदिदं अवक्तव्यभागवृद्धिस्थानंगळसंख्यातंगळ्नडदोम। ज
रूऊणवरे अवरस्सुवरि संवड़िढदे तदुक्कस्सं ।
तम्हि पदेसे उड्ढे पढमा संखेज्जगुणवड्ढी ।।१०७।। रूपोनावरेऽवरस्योपरि संवद्धिते तदुत्कृष्टं । तस्मिन् प्रदेशे वृद्ध प्रथमा संख्यातगुणवृद्धिः ॥
रूपोनजघन्यावगाहनमिदु ज जघन्यावगाहनद मेले मेले सद्धिसल्पडुत्तिरलुमवक्तव्य भागवृद्धिय चरमोत्कृष्टावगाहनस्थानमक्कु ज मिल्लियवक्तव्यभागवृद्धिस्थानंगळे नितप्पुर्व दोडे आदि अंते इत्यादि सूत्रोक्तक्रमदिदं तंद लब्धमिनितप्पुदु ज मत्तमा चरमावक्तव्य भागवृद्धिस्थान
वड्ढिहिदे रूवसंजुदे ठाणेत्येतावन्ति स्युः ज १५–२। संख्यातभागवृद्धश्चरमावगाहनस्थाने एकरूपे युते ।।
२।१५ । १
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सत्त्ववक्तव्यभागवृद्धेः प्रथमावगाहनस्थानमुत्पद्यते ज एतदने प्रदेशोत्तरवृद्धिक्रमेण अवक्तव्यभागवृद्धिस्थानान्यसंख्यातान्यतीत्यैकत्र ॥१०॥
रूपोनजघन्यावगाहने ज जघन्यावगाहनस्योपरि वर्धिते सति अवक्तव्यभागवृद्धः चरममुत्कृष्टावगाहनस्थानं स्यात् ज । अत्रावक्तव्यभागवृद्धिस्थानानि कति ? इति चेत् आदौ, अन्ते, सुद्धे इत्यादिना लब्धानि
जानने के लिए पूर्वोक्त करणसूत्रके अनुसार संख्यात भागवृद्धिके आदि स्थान के प्रदेश १५ प्रमाणको अन्तिम स्थानके प्रदेश परिमाणमें घटाकर एकसे भाग देकर एक जोड़नेपर जो प्रमाण हो,उतने ही संख्यात भागवृद्धिके स्थान हैं । संख्यात भागवृद्धिके अन्तिम अवगाहना स्थानमें एक प्रदेश जोड़नेपर अवक्तव्य भागवृद्धिका प्रथम अवगाहन स्थान उत्पन्न होता है। उसके आगे एक-एक प्रदेशकी वृद्धि के क्रमसे अवक्तव्य भागवृद्धिके असंख्यात स्थानको उलंघ कर ॥१०६।।
२० एक कम जघन्य अवगाहनाको जघन्य अवगाहनाके ऊपर बढ़ानेपर अवक्तव्य भागवृद्धिका अन्तिम उत्कृष्ट अवगाहनस्थान होता है। यहाँ अवक्तव्यभागवृद्धिके कितने सब स्थान हुए , यह जाननेके लिए पूर्वोक्त करणसूत्रके अनुसार आदि स्थानको अन्तिम स्थानमें
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