Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
ऐदासि भासा तालुवदंतोडकंठ वावारं ।
परिहरिय एक्ककालं भव्वजणाणंदकरभासो ॥५६॥
एतासां भाषाणां तालुदन्तोष्ठकण्ठव्यापारं परिहृत्यैककालं यथा भवति तथा भव्यजना
नन्दकरभाषः ॥
भोवणवे तर जोइसियकप्पवासीहि केसवबलेहिं । विज्जाहरेहि चक्कोप मुहेहिं नरेहिं तिरिएहि ॥५७॥ भावनव्यंतरज्योतिष्क कल्पवासिभिः केशवबलैविद्याधरैश्च विप्रमुखैर्नरैस्तिर्यग्भिः ॥ देह अहिं विरचिदचरणारविर्देजुग जो । fageत्येसारो महवीरो अत्थकत्तारो ॥५८॥ एतैरन्यैविरचितचरणारविन्दयुगपूजो । दृष्टसकलार्थसारो महावीरोऽर्थंकर्त्ता स्यात् ॥ द्रव्यविशेषार्थंकर्ता ।
सुरखेरमणहरणे गुणणामे पंचसेलणयरम्मि |
विउलम्मि पव्वदवरे वीरजिणो अत्थकत्तारो ॥५९॥
सुरखेचरमनोहरे गुर्णनाम्नि पञ्चशैलनगरे विपुले पर्वतवरे स्थित्वा वीरजिनोऽर्थंकर्त्ता ॥ क्षेत्र विशेषार्थकर्त्ता ।
ऐत्यावसप्पिणीए चउत्थकालस्स चरिमभागम्मि । तेत्तीसवास अडमासं पण्णरसदिवस से सम्मि ॥६०॥
अत्र भरतक्षेत्रेऽवसर्पिण्यां चतुर्थकालस्य चरमभागे त्रयस्त्रशद्वर्षाष्ट मास पञ्चदशदिवसशेषे ॥ 'वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुलपडिवाए । अभिजिदणक्खत्तम्मि य उप्पत्ती धम्मतित्थस्स ॥ ६१ ॥
।।५७-५८।।
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संज्ञ्यक्ष रानक्षरभाषात्मकत्यक्तता लुदन्तोष्ठकण्डव्यापारभव्यजनानन्दक
युगपत्सर्वोत्तरप्रतिपादक दिव्यध्वन्युपेतो
बोधित करता है । अठारह महाभाषा, सातसौ क्षुद्र भाषा और संज्ञी जीवोंकी अक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक समस्त भाषा इन भाषाओंको तालु, दन्त, ओष्ठ और कण्ठके व्यापारके विना एक ही समय में भव्य जीवोंको आनन्द करते हुए प्रयोग करता है ॥५०-५६ ।।
भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, कल्पवासी देवोंके द्वारा तथा नारायण, बलभद्र, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि मनुष्यों, तिर्यंचों तथा दूसरे जीवोंके द्वारा जिनके चरण कमल पूजे जाते हैं और जिन्होंने समस्त पदार्थोंके रहस्यको देखा है, वे भगवान् महावीर अर्थकर्ता
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यह द्रव्य रूपसे अर्थकर्ताका कथन हुआ ।
देवों और विद्याधरोंसे शोभित सार्थक नामवाले पंचशैल नगर में विपुलाचल पर स्थित होकर वीरजिनने उपदेश दिया || ५९ ॥
यह क्षेत्रकी अपेक्षा अर्थकर्ताका कथन हुआ ।
इस भरत क्षेत्रमें अवसर्पिणीके चतुर्थकालके अन्तिम भाग में तैंतीस वर्ष आठ मास
१. ति प १६२ । २. ति प १।६३ । ३. ति प ३५ ६. म पकर्ता । ७. ति प १।६५ । ८. मनाम । १२. क पदेवाए ।
०
११.
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१६४ । ४. न
९. ति प १।६८ ।
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५. म
१०. ति प १६९ ।
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