Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
एंदितौदयिकादिपंचभाबंगळुर्ग सामान्यार्थप्रतिपादनमं माडि मुंदे विस्तरमागि महाधिकार
दोळपेरु ॥
तदनंतरमा गुणस्थानंगळं गाथाद्वर्यादिदमुद्दे शिसिपदपरु - मिच्छो सासण मिस्सो अविरदसम्मो य देसविरदो य । विरदा पमत्त इदरो अव्व अणियट्टि सुहमो य ॥९॥ वसंत खोणमोहो सजोगकेवलिजिणो अजोगी य । चोदस जीवसमासा कमेण सिद्धा य णादव्वा ॥ १० ॥
नामैकदेशो नाम्नि प्रवर्तते एंबी न्यायद धोये यरित्पडुगुं । मिथ्यादृष्टिः सासादनो मिश्रोऽविरतसम्यग्दृष्टिश्च देशविरतरच, विरताः प्रमत्त इतरोऽपूर्वोऽनिवृत्तिः सूक्ष्मश्च । उपशान्त १० क्षीणमोहौ सयोगकेवलिजिनोऽयोगी च चतुर्दशजीवसमासाः क्रमेण सिद्धाश्च ज्ञातव्याः ॥
उदयादिनिरपेक्षः परिणामः तस्मिन् भवः पारिणामिकः । एवमौदयिकादीनां पञ्च भावानां सामान्यायं प्रतिपाद्य विस्तरतः अग्रे तन्महाधिकारे प्रतिपादयिष्यति ॥ ८ ॥ अथ तानि गुणस्थानानि गाथाद्वयेन उद्दिशति - मिथ्या - तत्त्वविषया दृष्टिः - श्रद्धा यस्यासी मिथ्यादृष्टिः । नाम्नि उत्तरपदश्चेति दृष्टिपदस्य लोपात् मिच्छो इत्युक्तं । अयं भेदः अग्रेऽपि ज्ञातव्यः । सह आसादनेन विराधनेन वर्तत इति सासादना । १५ सासादना सम्यग्दृष्टिर्यस्यासौ सासादनसम्यग्दृष्टिः । अथवा आसादनेन सम्यक्त्वविराधनेन सह वर्तमानः सासादनः । सासादनश्चासो सम्यग्दृष्टिश्च सासादनसम्यग्दृष्टिः । इदं भूतपूर्वन्यायेन सम्यग्दृष्टित्वं ज्ञातव्यं । सम्यक्त्वमिथ्यात्वमिश्रो मिश्रः । सम्यक् समीचीना दृष्टिः- तत्वार्थश्रद्धानं यस्यासौ सम्यग्दृष्टिः । स चासो अविरतश्च अविरतसम्यग्दृष्टिः । देशतः - एकदेशतः, विरतो देशविरतः संयतासंयत इत्यर्थः । अत्र विस्तपदं उपरितनसर्वगुणस्थानवर्तिनां संयमित्वमेव ज्ञापयति । प्रमाद्यतीति प्रमत्तः । इतर:- अप्रमत्तः । अपूर्वाः करणा:
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२० जीवके गुणका अंश देखा जाता है, वह क्षयोपशम है । उसके होनेपर होनेवाला भाव क्षायोपशमिक है । जिसमें उदय आदिकी अपेक्षा नहीं है, उसे परिणाम कहते हैं । उसके होते हुए होनेवाला भाव पारिणामिक है । अर्थात् उदयादि निरपेक्ष परिणाम ही पारिणामिक भाव है । इस प्रकार औदायिक आदि पाँच भावोंका सामान्य अर्थ कहा । विस्तार से आगे उनके महाधिकार में कहेंगे ||८||
आगे उन गुणस्थानोंका निर्देश दो गाथाओंसे करते हैं - मिथ्या अर्थात् अतत्त्वको विषय करनेवाली, दृष्टि अर्थात् श्रद्धा जिसके है, वह मिथ्यादृष्टि है । 'नाम्नि उत्तरपदश्च' इस सूत्र के अनुसार दृष्टिपदका लोप होनेसे 'मिच्छो' कहा है। यह भेद आगे भी जानना । जो आसादना अर्थात् विराधना के साथ रहे, वह सासादना है। जिसकी सम्यग्दृष्टि सासादना है, वह सासादन सम्यग्दृष्टि है । अथवा आसादन अर्थात् सम्यक्त्वकी विराधना के ३० साथ जो वर्तमान है, वह सासादन है । सासादन सम्यग्दृष्टिको सासादन सम्यग्दृष्टि कहते हैं। भूतपूर्व न्यास से अर्थात् पहले वह सम्यग्दृष्टि था, इस अपेक्षा से यहाँ सम्यग्दृष्टिपना जानना । सम्यक्त्व और मिध्यात्वके मेलका नाम मिश्र है । सम्यक् अर्थात् समीचीन, दृष्टि अर्थात् तत्त्वार्थ श्रद्धान जिसका है, वह सम्यग्दृष्टि है । तथा जो अविरत होने के साथ १. छाये ।
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