Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सागरोपमकालावस्थायि येदुत्कृष्ट विवयि पेळल्पट्टदु। कर्मक्षपणहेतुबुदरिदं मोक्षकारणंगळप्प सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपरिणामंगळोळु सम्यक्त्वमे मुख्यकारणमें दितु सूचिसल्पटुदु।
वेदकसम्यक्त्वक्के शंकादिमलंगळु यथासंभवमागि सम्यक्त्वनिमूलनोच्छेदना कारणंगळसम्यक्त्वप्रकृत्युदयदिद पुटुववु । औपशमिकक्षायिकसम्यक्त्वंगळ्गे मलजननकारणतदुदयाभावदिदं निर्मलत्वं सिद्धमादुर्देदरिगे। चलमलिनागाढमुमतेने पेळ्द प्रथमोद्दिष्ट चलम बुदु। ५ श्लोक
नानात्मीयविशेषेषु चलतीति चलं स्मृतं ।
लसत्कल्लोलमालासु जलमेकमिव स्थितं ॥ . यदितु पेळेल्पट्टदिदितें दोर्ड आप्तागमपदार्थश्रद्धानविकल्पगळोळु चलिसुगुमें दितु चलमें बुदें तेंदोड-"स्वकारितेऽर्हच्चैत्यादौ देवोऽयं मेऽन्यकारिते । अन्यस्यायमिति भ्राम्यन्मोहाच्छ्राद्धो- १०. ऽपि चेष्टते ॥" एंदितु स्वकारितार्हच्चत्यादिगळोळु ममत्वदिदं ममायं देवः एंदितु अन्यकारिताहच्चैत्यादिगळोळन्दस्यायं देवः एंदु परकीयत्वदिदं बेक्य्दु भजनदत्तणिदं चलमेंदु पेळल्पटुदु । इल्लि दृष्टांतमं पेळ्दपरु । नानाकल्लोलमालेगळोळेतु जलमो यादोडं नानारूपदि चलिसुगुमे ते
उत्कर्षेण ) षट्षष्टिसागरोपमकालावस्थायीत्युत्कृष्टविवक्षयोक्तं ( न तु सार्वकालिक)। कर्मक्षपणहेतु इत्यनेन मोक्षकारणसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपरिणामेषु सम्यक्त्वमेव मुख्यकारणमिति सूच्यते । वेदकसम्यक्त्वस्य शंकादिमला १५ अपि यथासंभवं सम्यक्त्वनिर्मलनोच्छेदनाकारणसम्यक्त्वप्रकृत्युदयादुत्पद्यन्ते । औपशमिकक्षायिकसम्यक्त्वयोर्मलजननकारणतदुदयाभावाग्निर्मलत्वं सिद्धमिति जानीहि । चलादीनि लक्षयति । तत्र चलत्वं यथा
नानात्मीयविशेषेषु चलतीति चलं स्मृतम् । लसत्कल्लोलमालासु जलमेकमिव स्थितं ।। नानात्मीयविशेषेषु आप्तागमपदार्थश्रद्धानविकल्पेषु चलतीति चलं स्मृतं । तद्यथास्वकारितेहच्चत्यादौ देवोऽयं मेऽन्यकारिते । अन्यस्यायमिति भ्राम्यन् मोहाच्छाद्धोऽपि चेष्टते ॥
स्वकारितेऽहच्चत्यादौ ममायं देव इति मदीयत्वेन, अन्यकारितेऽर्हच्चत्यादी परकीयत्वेन च भजनाच्चलमित्युक्तं । अत्र दृष्टान्तमाह-नानाकल्लोलमालासु जलमेकमवस्थितं तथापि नानारूपेण चलति तथा मोहात
२०
उपशम होनेपर वेदक सम्यक्त्व होता है। 'नित्य' विशेषणसे यद्यपि वेदक सम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है,तथापि छियासठ सागर प्रमाण स्थितिमात्र दीर्घकाल तक स्थायी होनेसे उत्कृष्ट विवक्षासे नित्य कहा है। नित्यसे वह सदाकाल रहता है,ऐसा अर्थ नहीं लेना २५ चाहिए । 'कर्मक्षपणहेतु' अर्थात् वह सम्यक्त्व कोंके क्षपणका कारण है, इस विशेषणसे यह सूचित किया है कि मोक्षके कारण सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप परिणामोंमें सम्यक्त्व ही मुख्य कारण है । वेदक सम्यक्त्वके शंका आदि मल भी यथासम्भव सम्यक्त्वको मूलसे नष्ट करने में असमर्थ सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे उत्पन्न होते हैं। औपशमिक और क्षायिक सम्यक्त्वमें मलको उत्पन्न करनेमें कारण सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयका अभाव होनेसे निर्मलता सिद्ध है,ऐसा जानो।
चल आदिका लक्षण कहते हैं-अपने ही नाना विशेषोंमें अर्थात् आप्त, आगम और पदार्थ विषयक श्रद्धानके विकल्पोंमें जो चलित होता है,उसे चल कहते हैं। जैसे, अपने द्वारा कराये गये जिनबिम्ब आदिमें 'यह मेरे देव हैं', इस प्रकार अपनेपनेसे और दूसरेके द्वारा कराये गये जिनबिम्ब आदिमें 'यह पराया है, इस प्रकार भेद करनेसे चल दोष कहा है। १० १. क तदुभयभाव।
३०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org