Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
पोत जरायुज अंडजजीवाणं गव्भदेवणिरयाणं । उववादं साणं सम्मुच्छणयं तु निहिं ॥ ८४ ॥
पोत जरायुजाण्डजजीवानां गर्भः । देवनारकाणामुपपादः शेषाणां संमूर्च्छनं तु निद्दिष्टं ॥ किंचित्परिवरणमंतरेण परिपूर्णावयवो योनिनिर्गममात्रेणैव परिस्पंदादिसामर्थ्योपेतः पोतः । जालवत्याणिपरिवरणं विततमांसशोणितं जरायुस्तस्मिन् जरायौ जाता जरायुजाः । शुक्लशोणित- ५ परिवरणमुपात्तकाठिन्यं नखत्वक्सदृशं परिमंडलमंड । तस्मिन् जाता अंडजाः । एंदिती पोताविजीवंग गर्भमे जन्ममक्कुं । चतुन्निकाय देववर्क लिगेयुं नारकर्गयुं घर्मादिभवंगळगुपपादमे जन्मनक्कुं । `शेष जीवंगळगेकेंद्रिय द्वींद्रियत्रींद्रिय चतुरंद्रियंगळगेयं वो दो दु केलवु पंचेंद्रियंग लब्ध्यपर्य्याप्तक मनुष्ययुं संमूर्च्छनमे जन्ममेदितु प्रवचनदोळप ||
अनंतरं सचित्तादियोनिभेदंगळगे संमूर्च्छनादिजन्मभेदंगळोळु संभवासंभवमं तोरल्वेडि १०
गाथासूत्रत्रयावतारं—
उववादे अच्चित्तं गमे मिस्सं तु होदि संमुच्छे ।
सच्चित्तं अच्चित्तं मिस्सं च य होदि जोणी हु ॥ ८५ ॥
१५७
उपपादेऽचित्तं गर्भे मिश्रस्तु भवति संमूर्च्छने । सचित्तोऽचित्तो मिश्रश्च भवति योनिः खलु ॥ देवदारक संबंधियप्पुपपाद जन्मभेददोळचित्तमे योनियक्कु । गर्भजन्मदोळ सचित्तचित्त - १५
किंचित्परिवरणमन्तरेण परिपूर्णावयवो योनिनिर्गममात्रेणैव परिस्पन्दादिसामर्थ्योपेतः पोतः । जालवप्राणिपरिवरणं वितत मांसशोणितं जरायुः तस्मिन् जातो जरायुज: । शुक्रशोणितपरिवरणं उपात्तकाठिन्यं नखत्वसदृशं परिमण्डलमण्डं तस्मिन् जातोऽखजः । एषां जीवानां गर्भ एव जन्म । चतुणिकायदेवानां नारकाणां च घर्मादिभवानामुपपाद एव जन्म । उक्तजीवेभ्यः शेषाणां एकद्वित्रिचतुरिन्द्रियाणां केषांचित्पञ्चेन्द्रियाणां लब्ध्यपर्याप्त मनुष्याणां च संमूर्च्छनमेव जन्मेति प्रवचने निर्दिष्टं कथितं ॥ ८४॥ अथ सचित्तादियोनिभेदानां २० संमूर्छनादिजन्मभेदेषु संभवासंभवं गाथात्रयेण निर्दिशति -
शरीरपर किसी भी प्रकारका किंचित् भी आवरण न हो, शरीरके अवयव सम्पूर्ण हों, और योनि से निकलते ही चलने-फिरने लगे, ऐसे जीवको पोत कहते हैं । रुधिर और मांसका विस्ताररूप जो प्राणी के शरीर के चारों ओर जालकी तरह आवरण होता है, वह जरायु है। उससे जो जीव पैदा होता है, वह जरायुज है । रज और वीर्यका जो आवरण २५ नखके चमड़े की तरह कठोरताको लिये हुए गोलाकार होता है उसे अण्डा कहते हैं, उससे जिसका जन्म हो, वह जीव अण्डज है। इन पोत, जरायुज और अण्डज जीवोंका गर्भजन्म ही होता है । चार निकायके देवोंका और धर्मा आदि नरकों में पैदा होनेवाले नारकियों का उपपाद जन्म ही होता है । उक्त जीवोंसे शेष एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवोंका, किन्हीं पंचेन्द्रियोंका, और लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका सम्मूर्छन ही जन्म होता है । ३० ऐसा आगम में कहा है ||८४||
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आगे सचित्त आदि योनिभेदोंका सम्मूर्छन आदि जन्मके भेदोंमें होना या न होना तीन गाथाओंसे कहते हैं
१. क शेषंगलगे उक्त जीवंगलगेरगागि उलिदेल्लाजीवं ।
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