Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे पढमक्खो अंतगदो आदिगदे संकमेदि बिदियक्खो ।
दोण्णि वि गंतूणंतं आदिगते संकमेदि तदियक्खो ॥४०॥ प्रथमाक्षोंतगत आविगते संक्रामति द्वितीयाक्षः । द्वयमपि गत्वान्तं आदिगते संक्रामति तृतीयाक्षः॥
__ प्रथमप्रमादाक्षमालापक्रमदिदं स्वपयंतमं पोद्दिमत्तावृत्तिगेम्दु तन्न प्रथमप्रमादस्थानम नागळोम्मे पोर्दुगुमागळ द्वितीय प्रमादाक्षं स्वद्वितीयस्थानमं पोदर्दुगुमंत्त युं प्रथमप्रमादाक्षं क्रमदिदं स्वपयंतम पोद्दियावृत्तियिनागळोम्म तन्न प्रथमप्रमावस्थानमं पोर्दुगुमागळु द्वितीयप्रमादाक्षं स्वतृतीयस्थानमं पोदर्दुगुमितु. द्वितीयप्रमादाक्षमागळोम्मे स्वपप्यंतमं पोर्दुगुमागळु प्रथमप्रमादाक्षम स्वपय्यंतमनेदिक्कुमितेरडुमक्षंगळुमावृत्तियि तं तम्म प्रथमस्थानमनागळोम्म
प्रथमप्रमादाक्षः आलापक्रमेण स्वपर्यन्तं गत्वा पुनर्व्याघुटय स्वप्रथमस्थानं युगपदेव आगच्छति तदा द्वितीयप्रमादाक्षो द्वितीयं स्वस्थानं गच्छति । पुनः प्रथमप्रमादाक्षः उक्तक्रमेण संचरन् स्वपर्यन्तं गत्वा व्याघुटय युगपदेव स्वप्रथमस्थानमागच्छति तदा द्वितोयप्रमादाक्षः स्वततोयं स्थानं गच्छति एवं संचरन् द्वितीयप्रमादाक्षो यदा स्वपर्यन्तं गच्छति तदा प्रथमाक्षोऽपि स्वपर्यन्तं गत्वा तिष्ठति । एवं द्वावप्यक्षौ व्याघुटय स्वस्वप्रथमं स्थानं गतौ तदा तृतीयप्रमादाक्षाः स्वप्रथमस्थानं मुक्त्वा स्वद्वितीयस्थानं गच्छति । अनेन क्रमेण प्रथमद्वितीयाक्षयोः
पहला प्रमाद अक्ष विकथा आलापके क्रमसे अपने अन्त तक जाकर पुनः लौटकर अपने प्रथम स्थानको युगपत् ही प्राप्त होता है, तब दूसरा प्रमाद् अक्ष अपने दूसरे स्थानको प्राप्त होता है । पुनः प्रथम प्रमाद अक्ष विकथा उक्त क्रमसे संचार करते हुए अपने अन्त तक जाकर लौटकर एक साथ ही अपने प्रथम स्थानको प्राप्त होता है, तब दूसरा प्रमाद अक्ष
कषाय अपने तीसरे स्थानको प्राप्त होता है। इस प्रकार संचार करते हुए दूसरा प्रमाद अक्ष २० कषाय जब अपने अन्त तक जाता है.तब प्रथम अक्ष विकथा भी अपने अन्त तक जाकर ठहर
जाता है । इस प्रकार दोनों ही अक्ष अर्थात् विकथा और कषाय लौटकर जब अपने-अपने प्रथम स्थानको प्राप्त होते है,तब तीसरा प्रमाद अक्ष अथोत् इन्द्रिय अपने प्रथम स्थानको छोड़कर अपने द्वितीय स्थानको प्राप्त होता है। इस क्रमसे पहले और दूसरे अक्षके अपनेअपने अन्त तक प्राप्त होकर लौटनेपर तीसरा प्रमाद अक्ष अपने तीसरे आदि स्थानको प्राप्त होता है,ऐसा जानना। इस कथनका खुलासा इस प्रकार जानना। विकथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा, स्नेह इनमें अक्षकी स्थापना करो। पहला अक्ष विकथा संचरण करता है अन्य अक्ष वैसे ही स्थिर रहते हैं। इस प्रकार संचार करते हुए प्रथमाक्ष विकथा राजकथा तक जाकर लौटकर जब प्रारम्भमें आता है, तब दूसरा अक्ष कषाय क्रोधका स्थान मान ले लेता है । उस दूसरे अक्ष मानके स्थिर रहते हुए प्रथम अक्ष विकथा पूर्ववत् संचार करता हुआ राजकथा तक जाकर लौटकर जब प्रारम्भमें आता है, तब दूसरे अक्ष मानका स्थान माया ले लेता है। उस माया कषायके तदवस्थ रहते हुए प्रथम अक्ष विकथा पूर्ववत् संचार करता हुआ राजकथा तक जाकर लौटकर पुनः प्रारम्भमें आता है, तब दूसरे अक्ष मायाका स्थान लोभ लेता है। उस कषाय लोभके स्थिर रहते हुए पहला अक्ष विकथा उसी प्रकार
संचार करते हुए अन्तको प्राप्त होता है । तब पहला और दूसरा दोनों ही अक्ष अर्थात् विकथा ३५ १. कमिभत्ता । २. क स्ववृत्तिय स्था' । ३. म माग्लो ।
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