Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
गच्छति तदा तृतीयप्रमादाक्षोऽपि क्रमेण संचरन् स्वपर्यन्तं गच्छति । एवं तौ द्वावप्यक्षो पुनः व्यावृत्य स्वस्वप्रथमस्थानं यदा युगपदेव आगच्छतः तदा प्रथमप्रमादाक्षः स्वप्रथमस्थानं मुक्त्वा स्वद्वितीयस्थानं गच्छति । अनेन क्रमेण तृतीयद्वितीयाक्षयोः स्वपर्यन्तप्राप्तिनिवृत्तिभ्यां प्रथमप्रमादाक्षस्य स्वतृतीयादिस्थानेषु संचारो ज्ञातव्यः । अयमक्षसंचारक्रमः उपरितोऽधस्तनं विचार्य वर्तयितव्यः ||३९|| अथ द्वितीय प्रस्तारापेक्षया अक्षपरिवर्तनक्रममाह
प्रथम स्थानको छोड़कर अपने द्वितीय स्थानको प्राप्त होता है अर्थात् स्त्रीकथाका स्थान भक्तकथा लेती है । इस क्रम से तीसरे और दूसरे अक्षके अपने अन्त तक जाने और लौटने से प्रथम प्रमाद अक्षका अपने तृतीय आदि स्थानोंमें संचार जानना चाहिए । इस उक्त कथनका खुलासा इस प्रकार है
विकथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा, स्नेहके आदिमें स्त्रीकथा, क्रोध, स्पर्शन प्रमादको स्थापित करके तृतीय अक्ष इन्द्रिय स्पर्शनको छोड़कर रसनामें रसनाको छोड़कर घ्राण में, १० प्राणको छोड़कर चक्षु में और चक्षुको छोड़कर श्रोत्र में संचार करता है । अन्य अक्ष उसी प्रकार स्थिर रहते हैं । इस प्रकार संचार करता हुआ तीसरा अक्ष श्रोत्रेन्द्रिय तक जाकर पुनः लौटकर जब प्रथम स्पर्शनपर आता है, तब दूसरा अक्ष कषाय क्रोधको छोड़कर मानपर आता है । पुनः दूसरे अक्ष के मानकषाय पर ही स्थित रहते हुए तीसरा अक्ष इन्द्रिय पूर्वोक्त क्रमसे संचार करता हुआ अन्त तक जाकर लौटकर जब प्रथम स्थानको प्राप्त होता है, तब १५ दूसरा अक्ष मानको छोड़कर मायामें संचार करता है । उस अक्ष मायाके उसी प्रकार स्थिर रहते हुए तीसरा अक्ष इन्द्रिय पुनः पूर्वोक्त क्रमसे संचार करता हुआ अन्त तक जाकर लौटकर जब पुनः प्रथम स्थानको प्राप्त होता है, तब दूसरा अक्ष मायाको छोड़कर लोभ में संचार करता है। उस अक्ष के उसी प्रकार स्थिर रहनेपर पुनः तीसरा अक्ष इन्द्रिय पूर्वोक्त क्रमसे संचार करता हुआ अन्त तक जाता है, तब तीसरा और दूसरा दोनों ही अक्ष अन्त तक २० जाकर लौटकर जब आदिमें आते हैं, तब प्रथम अक्ष विकथा स्त्रीकथाको छोड़कर भक्तकथा में संचार करता है। उसके उसी प्रकार स्थिर रहते हुए तीसरा और दूसरा अक्ष पूर्वोक्त क्रमसे संचार करते हुए अन्त तक जाकर पुनः लौटकर जब आदिमें आते हैं, तब प्रथम अक्ष भक्तकथाको छोड़कर राष्ट्रकथामें संचार करता है । उसके उसी प्रकार स्थिर रहते हुए तीसरा और दूसरा अक्ष उक्त क्रमसे संचार करते हुए अन्त तक जाकर पुन: लौटकर जब आदिमें आते हैं, तब प्रथम अक्ष राष्ट्रकथाको छोड़कर राजकथामें संचार करता है । उसके उसी प्रकार स्थिर रहनेपर तीसरा और दूसरा अक्ष उक्त क्रमसे संचार करते हुए अन्त तक जाते हैं और इस तरह अक्ष संचार समाप्त होता है । निद्रा और स्नेह एक-एक ही हैं । इसलिए उनका अक्ष संचार नहीं होता। इस प्रकार अक्ष संचारका आश्रय लेकर प्रमादोंके आलाप बतलाते हैं
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स्त्रीकथालापी, क्रोधी, स्पर्शन इन्द्रियके आधीन |१| स्त्रीकथालापी, क्रोधी, रसना इन्द्रियके आधीन |२| स्त्रीकथालापी, क्रोधी, घ्राण इन्द्रियके आधीन | ३| स्त्रीकथालापी, क्रोधी, चक्षु इन्द्रियके आधीन |४| स्त्रीकथालापी, क्रोधी, श्रोत्र इन्द्रियके आधीन | ५ | पुनः लौटने पर खीकथालापी, मानी, स्पर्शन इन्द्रियके आधीन | ६ | इत्यादि क्रमसे आगेके आलाप लाना चाहिए। इस प्रकार स्त्रीकथाके बीस प्रमादालाप होते हैं। इसी प्रकार शेष विकथाओंके भी बीस-बीस आलाप होनेसे चारों कथाओंके मिलकर अस्सी आलाप होते हैं ||३९||
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आगे द्वितीय प्रस्तार की अपेक्षा अक्षपरिवर्तनका क्रम कहते हैं
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