Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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५
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११६
२०
| आपूर्वकरणद अर्थसंदृष्टिगळ्धु:
३०
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==a । २११।१।२ २१२।२१ 2 1 2 1२ == ०२११।१।२ २११।२११२।१।२
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गो० जीवकाण्डे
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= a = ०२१११२ २११।२१।१।२ = a = a२११।२।२ २११।२११।१।२
aa a a а
१५ षट्स्थानपतितंगळप्प जघन्य मध्यमोत्कृष्ट भेवभिन्नंगळप्प परिणामस्थानंगळगे प्रतिसमयं प्रति
पूर्व्वकरणकालप्रथमादिसमयंगळोळपेळ्द परिणाम विन्यास रचने । इल्लि प्रथमसमयं मोदगोंडु चरमसमयपर्यंत मव स्थितंगळप्प संख्यात लोकवार= =
१११११ २२२२२
समय परिणामानां सर्वकालेऽपि सादृश्याभावात् अनुकृष्टिरचना नास्ति । अत्र अपूर्वकरणकाले प्रथमादिचरम
za = a
५६८
५५२
५३६
५२०
५०४
1411111
४८८
४७२
४५६
२।२।२।२।२।
समयपर्यन्तस्थितानां असंख्यात लोकवार - a a aa მ षट्स्थानपतित जघन्य मध्यमोत्कृष्टभेदसर्वधनमें देनेपर जो प्रमाण हो, उसे चय जानो । तथा 'व्येक पदार्धघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनं' इस सूत्र के अनुसार एक कम गच्छके आधे प्रमाणसे चयको गुणा करके गच्छसे गुणा करने पर जो प्रमाण हो, उसे चयधन जानो। उसको सर्वधनमें से घटाकर शेषको गच्छका भाग देनेपर जो प्रमाण आये, वही प्रथम समयवर्ती त्रिकाल गोचर नाना जीव सम्बन्धी
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पूर्वकरण परिणामों का प्रमाण होता है । उसमें एक चय जोड़ने पर द्वितीय समयवर्ती नाना जीव सम्बन्धी अपूर्वकरण परिणामोंका प्रमाण होता है । इसी प्रकार तीसरे आदि समयों में एक-एक चय क्रमसे बढ़ाने पर परिणामोंका प्रमाण होता है । ऐसा करने पर अन्तिम समय सम्बन्धी परिणाम धन एक कम गच्छ प्रमाण चयको प्रथम समय सम्बन्धी धनमें जोड़ने पर जितना प्रमाण हो, उतना है । उसमें एक घटाने पर द्विचरम समयवर्ती नाना जीव सम्बन्धी विशुद्ध परिणामों के पुंजका प्रमाण होता है । इस प्रकार समय-समय सम्बन्धी परिणाम क्रमसे बढ़ते हुए जानना । इस अपूर्वकरणमें पूर्वोत्तर समय सम्बन्धी परिणामोंमें सदा ही समानताका अभाव है, इससे यहाँ खण्ड रूप अनुकृष्टि रचना नहीं है । इस अपर्वकरणके कालमें प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय पर्यन्त परिणामस्थान पूर्वोक्त विधान के अनुसार असंख्यात लोक बार षट्स्थानपतित वृद्धिको लिये हुए जघन्य मध्यम उत्कृष्ट भेद से युक्त हैं ।
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